साधु और संतों की सबसे कठिन तप देखनी है तो आइए तीर्थों के शहर प्रयागराज में। संगम तीरे चल रहे माघ मेले में देशभर से आए संत यहां धूना तपस्या कर रहे हैं। कभी अग्नि को सिर पर रखकर तो कभी गोद में रख कर अनूठी तपस्या कर रहे हैं। जग कल्याण की कामना के लिए यह कठिन तप कर रहे संत 12-12 घंटे इसी मुद्रा में बैठ धूना तपस्या कर रहे हैं।
यह तप कोई एक या दो दिन नहीं बल्कि पूरे 18 साल तक का होता है जो 6 भागों में बंटा होता है। तीन-तीन साल का यह तप अलग-अलग तरीके से संतों द्वारा किया जाता है। माघ मेले के तपस्वी नगर में चल रहे इस अनूठे तप को देखने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंच रहे हैं।
आइए, समझते हैं क्या धूना तपस्या….
18 साल की यह तपस्या करना बहुत कठिन मानी जाती है।
अग्नि काे साक्षी मानकर करते हैं यह तप
अखिल भारतीय श्रीपंच तेरहभाई त्यागी अयोध्या के महंत राम संतोष दास बताते हैं कि यह तप साधु अपने लिए नहीं बल्कि लोक कल्याण के लिए करते हैं। इसमें कोई दिखावटी नहीं होती है। यह तपस्या पूरे 18 साल की होती है। जो साधु इस तपस्या को शुरू करता है वह पूरे 18 साल तक इसे पूरा करना होता है। साधु पंचधूना तप, सप्त धूना तप, द्वादश धूना तप, चौरासी धूना तप, कोट धूना और खप्पर धूना तप करते हैं। खास बात यह है कि यह तपस्या अग्नि माता के बीच में बैठ कर किया जाता है। कभी अग्नि को गोद में रखकर तो कभी मिट्टी के बर्तन में सिर पर रखकर संत जाप करते हैं।
मई और जून की भीषण गर्मी में भी इसी मुद्रा में अग्नि के बीच करते हैं तपस्या।
सिर पर घड़ा रखकर ध्यान में लीन हैं तपस्वी
इन दिनों 200 से ज्यादा साधु खाक चौक के तपस्वीनगर में अग्नि के घेरे में बैठ कर धूना तपस्या कर रहे हैं। कुछ संत सिर पर मिट्टी के घड़े में अग्नि रखकर जाप कर रहे हैं। ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की दशमी यानी गंगा दशहरा के दिन तपस्या की पूर्णाहूति होगी। महंत संतोष बताते हैं कि यह धूना तपस्या प्रतिदिन कम से कम पांच घंटे से लेकर 12 घंटे तक अग्नि के साथ चलती है। उसके बाद साधु अपने अन्य काम करते हैं। माघ मेले में धूना तपस्या का संकल्प लेने वाले साधु सुबह से शाम तक साधना में लीन रहते हैं। गंगा दशहरा पर हवन पूजन पर धूनी को गंगा में विसर्जित करेंगे।
मिट्टी के घड़े में आग भरकर सिर पर 12 घंटे तक रखे रहते हैं।
भंग हुई तपस्या तो फिर से शुरू करते हैं
साधु बताते हैं कि इस तपस्या का नियम बहुत ही सख्त है। यदि किसी भी स्थिति में तपस्या भंग हो जाती है तो संत इसे नए सिरे से अगले वर्ष फिर से आरंभ करते हैं। माघ मेले में संगम की पवित्र धरा पर हम लोग यह तपस्या लोक कल्याण के लिए कर रहे हैं।
अपने चारों ओर अग्नि का घेरा बनाकर संत कुछ इस तरह जप करते हैं।