बिहार में भाजपा नंबर-1, फिर भी नीतीश सीएम:केंद्र सरकार और EBC वोट बैंक जाने का डर, जानिए मुख्यमंत्री भाजपा का क्यों नहीं बना
KHABREN24 on November 19, 2025
नीतीश कुमार कल यानी 20 नवंबर को 10वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। बिहार में पहली बार विधानसभा में नंबर-1 पार्टी बनने के बाद भी भाजपा ने नीतीश को ही सीएम बनाने का फैसला किया। साथ ही भाजपा ने अपने दोनों डिप्टी CM सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा को रिपीट किया है।
4 पॉइंट में समझिए, नीतीश को ही भाजपा ने क्यों CM बनाया…
पहले चुनाव के नतीजे जान लीजिए…
NDA (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) को 243 में से 202 मतलब तीन चौथाई सीटों पर जीत मिली है। इसमें भाजपा को 89, JDU को 85, LJP(R) को 19, HAM को 5 और RLM को 4 सीटें मिली हैं। महागठबंधन सिर्फ 35 सीटों पर सिमट गया है।
1ः नीतीश के नाम पर जीते
भाजपा ने पूरे चुनावी कैंपेन के दौरान नीतीश कुमार के नेतृत्व की बातें कही है। PM मोदी से लेकर गृहमंत्री अमित शाह तक नीतीश का नाम लेने से नहीं चूके।
जब महागठबंधन ने CM फेस पर सवाल उठाया तो 29 अक्टूबर को अमित शाह ने इसका खंडन किया। दरभंगा के अलीनगर में चुनावी सभा करते हुए शाह ने कहा था, ‘सोनिया जी अपने बेटे को PM बनाना चाहती हैं और लालू जी अपने बेटे को CM। मैं उन्हें कहना चाहता हूं- ये दोनों पद खाली नहीं हैं। वहां (दिल्ली) मोदी जी हैं। यहां (पटना) नीतीश जी।’
सीधे तौर पर एक्सपर्ट का कहना है कि NDA की बड़ी जीत नीतीश कुमार के नाम पर ही हुई है। जब जीत नीतीश कुमार के नाम पर हुई तो मुख्यमंत्री भी नीतीश कुमार ही होंगे।
जदयू विधानमंडल की बैठक को संबोधित करते हुए नीतीश कुमार।
2ः भाजपा के पास नीतीश से बड़ा चेहरा नहीं
भाजपा के पास एक भी ऐसा चेहरा नहीं है, जिसकी पहचान पूरे राज्य में हो। चेहरे की कमी से जूझ रही भाजपा के पास नीतीश कुमार ही ऑप्शन हैं।
सीनियर जर्नलिस्ट शिशिर सिन्हा कहते हैं, ‘फिलहाल बिहार भाजपा में कोई बड़ा OBC चेहरा नहीं है। सुशील कुमार मोदी के निधन के बाद ऐसा कोई OBC लीडर नहीं है, जिसकी राष्ट्रीय स्तर पर पहचान हो। बिहार राजनीतिक रूप से उपजाऊ जमीन वाला राज्य है। यहां बड़ा राजनीतिक कद वाला व्यक्ति ही मुख्यमंत्री बनेगा। चेहरा की कमी का फायदा नीतीश कुमार को मिलता रहा है।’
सीनियर जर्नलिस्ट प्रियदर्शी रंजन कहते हैं, ‘भाजपा अब तक नीतीश कुमार की जूनियर पार्टनर बनकर ही रही है। उसने अपना एक भी ऐसा चेहरा तैयार नहीं किया है, जिसकी पैठ या प्रभाव पूरे राज्य में हो। इस चुनाव में भी यह कमी खली है।’
3ः EBC वोटरों के खिसकने का खतरा
बिहार में नीतीश कुमार के पास कम से कम 15% वोट शेयर है। उनके वोट शेयर पर उनके पाला बदलने से कोई असर नहीं होता है।
वह बिहार में कुर्मी, EBC और महादलित समुदाय के सबसे बड़े नेता हैं। इस समुदाय के लोगों के लिए नीतीश कुमार प्राइड इश्यू हैं। यही वजह है कि नीतीश कुमार को साथ रखना BJP और RJD दोनों की मजबूरी है।
एक्सपर्ट मानते हैं कि बिना नीतीश कुमार की मर्जी से उनका पद से हटाने पर उनके वोटर भड़क सकते हैं। यह रिस्क भाजपा नहीं लेना चाहती। क्योंकि उसे राज्य में अभी लंबी राजनीति करनी है।
सीनियर जर्नलिस्ट अभिरंजन कुमार कहते हैं, ‘नीतीश कुमार की उम्र बढ़ रही। उन्होंने अब तक अपनी पार्टी का सेकेंड मैन तय नहीं किया है। पूरी संभावना है कि उनके जाने के बाद पार्टी टूटेगी और वोटर भाजपा के साथ जाएंगे। जब यह सब हो ही रहा तो भाजपा जल्दबाजी क्यों करेगी।’
विधानमंडल की बैठक में जदयू के नव निर्वाचित विधायक हुए शामिल।
4ः केंद्र की सरकार में नीतीश फैक्टर
केंद्र की मोदी सरकार में नीतीश कुमार की पार्टी साझीदार है। लोकसभा में 543 सीटें हैं। सरकार बनाने के लिए कम से कम 272 सीटें चाहिए। BJP की अगुआई वाले NDA गठबंधन को 292 सीटें मिली हैं।
इसमें जदयू के पास 12 सीटें हैं। अगर जदयू, महागठबंधन के साथ जाती है, तो NDA के पास 280 सीटें रहेंगी। यानी बहुमत से 8 सीटें ज्यादा। तब भी NDA की सरकार बनी रहेगी, लेकिन गठबंधन के बाकी घटक दलों में परसेप्शन खराब होगा।