श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास ने बाबा को चढ़ाया बेल पत्र 5 रुपए में बेचने के लिए स्टॉल लगाया तो भक्त गुस्सा हो गए। न्यास के इस फैसले के खिलाफ भक्तों ने शिकायत की। उनका कहना था- ऐसा पहली बार हुआ कि दर्शन के बाद हमेशा निशुल्क मिलने वाला बाबा विश्वनाथ पर चढ़ा बेल पत्र खरीदना पड़ रहा है।
बेल पत्र बेचने के लिए लिफाफे भी छप गए, पैकिंग भी हो गई और बिक्री शुरू कर दी। लेकिन, न्यास के अध्यक्ष का दावा है कि बिना उन्हें सूचित किए अधिकारियों ने बेल पत्र बिक्री का फैसला ले लिया।
मंदिर न्यास के इस फैसले और उसके विरोध को जानने के लिए दैनिक भास्कर ने पड़ताल की। न्यास के अध्यक्ष प्रो. नागेंद्र पांडेय से बात की तो उन्होंने कहा कि मंदिर परिसर में बेल पत्र की बिक्री करने का फैसला उनका नहीं, बल्कि अधिकारियों का है। मंदिर की आय बढ़ाने या किसी पदार्थ की बिक्री को लेकर उनसे चर्चा तक नहीं की गई।
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास का बांस फाटक स्थित कार्यालय, जहां बेल पत्र की बिक्री की जा रही थी। होर्डिंग पर इसके रेट भी लिखे थे।
लोग बाबा का चढ़ा बेल पत्र खरीदते दिखे
इसके बाद रिपोर्टर मंदिर की ओर बढ़ा तो मुख्य द्वार से लेकर परिसर के अंदर जगह-जगह पोस्टर और स्टैंडी-होर्डिंग लगी दिखी। देश-विदेश के पर्यटक बाबा का चढ़ा बेल पत्र खरीदते दिखे। कुछ लोग इसे नई परंपरा मानते हुए खरीद रहे थे, तो कुछ इसका विरोध करते दिखे। विरोध करने वालों ने कहा कि बाबा का फ्री में मिलने वाला प्रसाद स्वरूप बेल पत्र के भी पैसे वसूले जा रहे हैं।
मामला तूल पकड़ने लगा तो 2 दिन में बिक्री रोकी
सोमवार को रिपोर्टर ने बेल पत्र की बिक्री की परंपरा पर सवाल उठाया तो पहले मुख्य कार्यपालक अधिकारी इसे सही ठहराते नजर आए। बाद में बचने का रास्ता ढूंढने लगे। रिपोर्टर ने बांस फाटक काउंटर से बेलपत्र खरीदकर इसकी बिल ली। हालांकि मामला तूल पकड़ने लगा और श्रद्धालुओं में गुस्सा बढ़ा तो न्यास को दो दिन में फैसला वापस लेना पड़ा और सोमवार रात बिक्री रोक दी गई।
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर में (बाएं) बेल पत्र 5 रुपए में बेचे जा रहे थे, जिसे बंद कर रेट लिखी जगह पर सफेद कागज (दाएं) चिपका दिया।
मंदिर के अंदर और बाहर काउंटर से पोस्टर फाड़ दिए या उन पर सफेद स्टीकर लगा दिए। दूसरे दिन ही काशी विश्वनाथ मंदिर बैक फुट पर आ गया और काउंटरों से बेल पत्र के पैकेट भी हटा दिए गए। बेल पत्र बिक्री का फैसला बदलने के बाद भक्तों का गुस्सा शांत हुआ। लेकिन, सीईओ समेत अन्य अधिकारी सवालों को टालते और फैसले पर सफाई देने से बचते नजर आए।