पॉजिटिव स्टोरी – 3 लाख से बनाई 500 करोड़ की कंपनी – विराट-धोनी जैसे क्रिकेटर पहनते हैं मेरे बनाए कपड़े, एडिडास, रीबॉक हमारे कस्टमर

KHABREN24 on August 21, 2022
पॉजिटिव स्टोरी – 3 लाख से बनाई 500 करोड़ की कंपनी – विराट-धोनी जैसे क्रिकेटर पहनते हैं मेरे बनाए कपड़े, एडिडास, रीबॉक हमारे कस्टमर

1995 की बात है। बेंगलुरु में जॉब करता था। उस वक्त सैलरी साढ़े 7 हजार रुपए प्रति महीने थी, लेकिन फैमिली प्रॉब्लम्स की वजह से 1997 में दिल्ली लौटना पड़ा। घर वालों का कहना था कि दिल्ली में ही काम करूं।

कई महीने जॉब ढूंढा, लेकिन मन लायक कोई काम मिला नहीं। यहां-वहां भटकता रहा। जेब में उतने पैसे थे नहीं कि कोई बड़ा बिजनेस शुरू करूं, तो दिल्ली के तुगलकाबाद में, जो उस वक्त सबसे सस्ता इलाका था, सिर्फ 10 सिलाई मशीन लगाकर 13 लोगों के साथ गारमेंट्स बनाने का काम शुरू किया। दूसरी कंपनियों के लिए थोक में गारमेंट्स बनाकर सप्लाई करने लगा।

आज हमारी दो कंपनियां हैं। 500 करोड़ का सालाना टर्नओवर है। 5,000 से ज्यादा लोग काम करते हैं। 2,000 से ज्यादा सिलाई मशीन से हर रोज 50 हजार के करीब टी शर्ट और ट्रैक पैंट तैयार किए जाते हैं। नेशनल-इंटरनेशनल क्रिकेट, आईपीएल, कॉमनवेल्थ गेम्स में हमारी कंपनी के बनाए कपड़े प्लेयर्स पहनते हैं।

रौशन जिन दो कंपनियों के बारे में बता रहे हैं, उनमें से एक कंपनी ‘पैरागन अपैरल’ की शुरूआत उन्होंने आज से करीब 24 साल पहले 1998 में की थी। ये कंपनी देशी-विदेशी कंपनियों को स्पोर्ट्स वियर बनाकर सप्लाई करती है। वहीं, ‘एल्सिस’ ब्रांड से रौशन स्पोर्ट्स वियर बनाकर मार्केट में बेचते हैं।

उनका दावा है कि एडिडास, रीबॉक, नाइकी जैसी स्पोर्ट्स वियर बनाने वाली विदेशी कंपनी को उनकी कंपनी ‘एल्सिस’ टक्कर दे रही है। यह इंडिया की पहली स्पोर्ट्स वियर कंपनी है।

रौशन बैद मूल रुप से असम के तेजपुर के रहने वाले हैं। वे कहते हैं, उस वक्त गांव में अच्छी पढ़ाई-लिखाई नहीं होती थी। घर वालों ने पहले राजस्थान के अजमेर भेजा और फिर कॉलेज के लिए दिल्ली आ गया। आईआईटी करना चाहता था। दो साल लगातार एंट्रेंस दिया, लेकिन क्रैक नहीं कर पाया। जिसके बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी के हंसराज कॉलेज में एडमिशन लेना पड़ा।

रौशन अपनी कहानी में थोड़ा और आगे बढ़ते हैं। बताते हैं, आईआईटी क्रैक नहीं कर पाने से निराशा तो जरूर हुई थी, लेकिन ग्रेजुएशन के बाद फैशन इंडस्ट्री में इंट्रेस्ट आने लगा। दिल्ली के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी (NIFT) से एमबीए इन मार्केटिंग एंड मर्चेंडाइजिंग कोर्स किया और फिर बेंगलुरु की एक गारमेंट कंपनी में बतौर इंटर्न काम करने लगा। बाद में जॉब मिल गई।

‘पैरागन अपैरल’ कंपनी की शुरुआत को लेकर रौशन दिलचस्प किस्सा बताते हैं। कहते हैं, जब बेंगलुरु से लौटा और दिल्ली में कई महीने भटकने के बाद मन लायक कोई जॉब नहीं मिला, तो अपना काम शुरू करने के बारे में सोचा।

इन बातों को कहते हुए रौशन के चेहरे पर स्ट्रगल के दिन दिखाई पड़ने लगते हैं। कहते हैं, कभी ऑर्डर मिलता तो कभी नहीं। क्लाइंट के पास इधर-उधर भागता फिरता। दो-तीन साल तक ऐसा लगा कि क्यों मैंने अपना काम शुरु किया। सारे फ्रेंड्स जॉब कर रहे थे। फिर से जॉब करने का ख्याल आने लगा। घर वालों ने भी यही बोला। एक रोज अपने एक दोस्त से मिलने गया। वह इंटरनेशनल कंपनी रीबॉक इंडिया का डायरेक्टर था। यह मेरी कंपनी और लाइफ के लिए टर्निंग प्वाइंट रहा।

तो क्या दोस्त ने आपकी मदद की? रौशन कहते हैं, उसने कहा कि यदि मैं पॉलिएस्टर से बने स्पोर्ट्स वियर बनाऊं, तो वो मेरा सारा प्रोडक्ट खरीद लेंगे।

इतना कहते ही रौशन के चेहरे पर एक हंसी आ जाती है। वे बताते हैं, मुझे तो पता भी नहीं था कि स्पोर्ट्स वियर बनाया कैसे जाता है। दोस्त ने ताइवान जाने को कहा। फ्लाइट की टिकट खुद के पैसे से बुक की। बाकी का खर्च उसने दिया।

तुगलकाबाद के जिस इलाके में ये यूनिट थी, वहां खरीददार नहीं आना चाहते थे, लोकेशन अच्छा नहीं था। साल 2001 में नोएडा में पापा के दोस्त से 6-7 लाख कर्ज लेकर प्लॉट खरीदा और फैक्ट्री शिफ्ट कर दी।

ताइवान जाककर पूरे प्रोसेस को समझा और क्लॉथ इंपोर्ट कर स्पोर्ट्स वियर बनाने लगा। दस साल के भीतर 1,000 से ज्यादा मशीनों का सेटअप लग चुका था। एडिडास, रीबॉक, नाइकी जैसी इंटरनेशनल कंपनियों से ऑर्डर मिलने लगे, लेकिन 2010 में सबकुछ चौपट हो गया।

रौशन बताते हैं, अर्थराइटिस बोन और फिर टीवी की बीमारी से पीड़ित हो गया। पूरा कारोबार ठप। जिसके बाद कंपनी को लेकर एक प्लान एग्जीक्यूट किया, ताकि मैं रहूं या न रहूं, कंपनी चलती रहे।

रौशन बैद शुरुआती दिनों में गारमेंट्स बनाकर कंपनियों को सप्लाई करते थे। फिर स्पोर्ट्स वियर बनाना शुरू किया। इसके लिए रौशन लुधियाना के अलावा विदेशों से क्लॉथ इंपोर्ट कर प्रोडक्ट बनाते थे। वे कहते हैं, 2013-14 में हिमाचल में कपड़ा बनाने की फैक्ट्री सेटअप की। यहां सब्सिडी मिल रही थी और जमीन सस्ती थी। अब हम सिर्फ धागा यानी यार्न खरीदते हैं।

जब आप लगातार 20 साल से दूसरी कंपनियों के लिए गारमेंट्स बना रहे थे, फिर ‘एल्सिस’ ब्रांड के साथ मार्केट में आने का आइडिया कैसे आया?

रौशन कहते हैं, 2016 तक मेरी कंपनी 100 करोड़ की हो चुकी थी। सोचता था कि यदि किसी इंडियन को स्पोर्ट्स वियर खरीदना होता है, तो वो इंटरनेशनल कंपनियों का प्रोडक्ट ही खरीदते हैं। वही प्रोडक्ट मैं इन कंपनियों को उनके ब्रांड टैग के साथ सप्लाई करता हूं। उनके लिए गारमेंट्स बनाता हूं।

लेकिन कोई इंडियन स्पोर्ट्स वियर का ब्रांड नहीं है, जो इंटरनेशन कंपनियों को टक्कर दे सके। 2017-18 में ‘एल्सिस स्पोर्ट्स वियर’ की शुरुआत की। आज कॉमन वेल्थ गेम्स, क्रिकेट, फुटबॉल से लेकर स्पोर्ट्स के हर सेक्टर में हमारी कंपनी के कपड़ों की डिमांड है। विराट कोहली से लेकर महेंद्र सिंह धोनी, रोहित शर्मा तक हमारी कंपनी के बनाए कपड़े पहनते हैं।

रौशन ‘एल्सिस’ को शुरू करने पीछे की चुनौती का एक किस्सा भी बताते हैं। कहते हैं, मैं आपको ब्रांड का नाम तो नहीं बताऊंगा, लेकिन एक बड़ी इंटरनेशनल कंपनी ने धमकी देते हुए कहा था कि या तो मैं अपना ब्रांड बंद कर दूं या वो मेरी मैन्युफैक्चरिंग बंद कर देंगे। इसकी वजह से ऑर्डर में करीब 60% की कमी आ गई, लेकिन मैंने लगातार मार्केट में एप्रोच बनाए रखा।

Shree Shyam Fancy
Balaji Surgical
S. R. HOSPITAL
5 1 vote
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x