कल काशी की भव्य देव दीपावली है। 20 लाख सैलानी, पर्यटक और श्रद्धालु मिट्टी के 21 लाख दीया-बाती से जगमगाती गंगा का भव्य श्रृंंगार देखेंगे। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, 70 देशों के राजदूत और 150 से ज्यादा विदेशी डेलीगेट्स क्रूज और बजड़ों से गंगा देव दीपावली का आनंद उठाएंगे। नमो घाट VVIP के लिए खुला रहेगा, बाकी आम सैलानियों के लिए प्रतिबंधित होगा।
गंगा के सभी 85 घाटों पर 31,500 लीटर सरसो के तेल से 21 लाख दीयों में रोशनी आएगी। इसके लिए सभी घाटों पर 70 समितियों को करीब 2000 कनस्टर तेल प्रशासन ने पहुंचा दिया है। देव दीपावली शुरू कराने वाले पंचगंगा घाट के नारायण गुरु के अनुसार, हर दीये में 15 मिलीग्राम तेल अटेंगे, जिससे करीब ढाई घंटे तक लगातार टिमटिमाएंगे। शाम को 5 बजकर 35 मिनट पर पंचगंगा के पांचों घाटों पर पहला दीया जलेगा।
17वीं सदी में अहिल्याबाई होल्कर द्वारा यहां पर रखवाए हजारा (पत्थर से बना दीपों का टॉवर) पर दीप जलेंगे। इसके बाद गंगा के सभी 85 घाटों, रेत, कुंड और तालाबों पर 15 से 20 मिनट के अंदर पूरे 21 लाख दीये जल जाएंगे। गंगा पर बोट्स और क्रूज का कब्जा हो जाएगा। सतरंगी आकाशीय आतिशाबजी, श्रीकाशी विश्वनाथ के गंगा द्वार और चेत सिंह किला पर होलोग्राफिक लेजर शो होंगे।
देव दीपावली के संस्थापक और मंगला गौरी मंदिर के महंत नारायण गुरु ने दैनिक भास्कर से बातचीत में कहा कि घाटों पर रहने वाले लोग रात 9 बजे तक इलेक्ट्रिक झालर न जलाएं, क्योंकि इससे देव दीपावली की नेचुरल चमक फीकी पड़ जाती है।
नारायण गुरु कहते हैं कि काशी के पंचगंगा घाट पर दीपदान और गंगा स्नान का महत्व है। इस दिन कार्तिक पूर्णिमा पर सूर्य के उगने से पहले जो स्नान करता है, उसके पाप तो कटेंगे ही साथ ही उसके भाग्य भी उदय हाेंगे। तीर्थराज प्रयागराज से भी लोग बनारस में गंगा स्नान करने आते हैं। पंचगंगा घाट में जटार घाट, बालाजी दुर्गाघाट, बिंदु माधव घाट और कोनिया घाट शामिल है। यहां पर गंगा में किरणा और धूतपापा नदियां मिलती हैं। गंगा में यमुना और सरस्वती आलरेडी हैं। इसलिए पांच नदियों की वजह से इसका पाम पंचगंगा घाट नाम पड़ा।
अहिल्याबाई ने 1000 और 500 पत्थरों के दीपक बनवाया। इसे हजारा कहते हैं। पत्थर की एक शिला से बना यह विशाल दीप मराठी शिल्पकला की बेहतर कृति है।
कैसे शुरू कराई देवों की दीपावली
नारायण गुरु ने कहा, “कार्तिक पूर्णिमा पर महाराष्ट्र समाज द्वारा बिंदु माधव मंदिर और दुर्गा घाट पर कुछ दीपक जलते थे। उस दीपक को देखकर मेरे मन में आया कि जब एक घाट पर इतना अलौकिक लग रहा तो बाकी घाटों पर भी ऐसा किया जाए। काशी के पुराने प्रकांड विद्वानों से मिला, तो एक कथा पता चली कि भगवान शंकर ने राक्षस त्रिपुर का वध किया था, उसी की खुशी में देवता देव लोग पर इस त्योहार को मनाते हैं। फिर काशी में इसकी शुरुआत कराने की कवायद की गई। क्योंकि, काशी तो तीनों लोगों में न्यारी नगरी है। इसलिए यहां भी दीए जलेंगे। 38 साल पहले 1985 में 1000 दीयों से देव दीपावली मनाई गई।”
काशीराज विभूति नारायण ने किया उद्घाटन
अब अगले साल 1986 में दिन रविवार 2-2 पूर्णिमा थी। क्रिकेट खेलने वालों लड़कों को जुटाया। हजारा पर दीप जलने के बाद हम लोगों ने सभी पांचों घाटों पर तिसी के तेल से 5000 दीये जलाए। आज 21 लाख दीप जल रहे हैं। देव दीपावली मनाने से पहले हम लोग पूर्व काशी राज विभूति नारायण सिंह के पास पहुंचे। उनको मुख्य अतिथि बनाया गया था। उनको ये प्रस्ताव दिया। महाराजा बोले कि गुरुनानक जयंती, त्रिपुरोत्सव और कार्तिक पूर्णिमा तीनों बातें हैं। वे काफी खुश हुए। कार्तिक मास से होने वाले फायदों का एक पत्रक बनाकर चाय-पान के दुकानों पर और काशी वासियों के घर-घर बांटा गया। 9 कनस्टर तेल जुटाए गए। काशी के लक्खा मेले की तरह काशी के राजा हाथी से पंचगंगा घाट पर आकर देव दीपावली का दीया जलाकर देव दीपावली की शुरुआत करा दी।
पहले साल 5 घाट, दूसरे साल 10 घाट हुआ। फिर 1990 तक 31 घाटों पर देव दीपावली मनाई गई। 1992 में अयोध्या नर संहार के बाद काशी के युवाओं ने देव दीपावली मनाने का उत्साह नहीं था। काशी की जनता कर्फ्यू से तंग में थी। इसलिए उस साल देव दीपावली नहीं मनाया गया। बहरहाल सरकारी कार्यक्रम बनने से पहले काशी के साधु-संत और महंत हमको 200 टीना तेल देते थे। तब देव दीपावली मनती थी।
आज झालर-बजड़ों वाली देव दीपावली
1995 तक तो 100 दीपक का खर्च 10 रुपए आता था। आज 100 दीपक का खर्चा 200 रुपए हो गए हैं। गंगा की धाराओं में दीपक टिमटमाते थे, बड़ा मनमोहक लगता था। आज तो खाली झालर-बत्ती और बजड़ों वाली देव दीपावली हो गई है। आज देव दीपावली इंटरनेशनल फेस्टिवल बन चुका है। लेकिन 20 साल पुरानी वाली देव दीपावली नहीं रही, इसलिए मैं अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। लेकिन, मां गंगा की कृपा से रोज शाम को 11 दीपक जलाकर शिव से प्रार्थना करता हूं कि मुझे ऐसा करने की शक्ति दें।
वैदिक काल का मेला है देव दीपावली
देव दीपावली की शुरुआत जिस घाट से हुई, उस घाट पर मौजूद श्रीमठ के प्रमुख और जगद्गुरु रामनरेशाचार्य जी महाराज से बातचीत की। उन्होंने कहा कि वैदिक काल से मनाते आ रहे हैं। ये किसी इंसान द्वारा चलाया गया नहीं है। भगवान शंकर का पर्व है। देवताओं ने बड़े राक्षस त्रिपुरा के वध के बाद जमकर जश्न मनाया। लेकिन कालांतर में यह उत्सव धीरे-धीरे कमजोर हो गया। महाराजा विभूति नारायण सिंह बड़े आध्यात्मिक राजा थे। उन्होंने श्री मठ के लोगों को देव दीपावली मनाने की बात कही। मैं यहां आया 1988 में। देव दीपावली के उत्सव को शिथिल नहीं होने दिया। महाराजा विभूति नारायण ने कहा कि हजारा स्तंभ दीपक मठ के भवन के पीछे छुप गया है। राजघाट वालों को यह दीप दिखता है, लेकिन दशाश्वमेध घाट से यह हजारा दीप नहीं दिखता। इसलिए, अब हम लोग दुर्गाघाट से आगे बड़े पत्थर का एक दीप स्तंभ लगवाएंगे।
देव दीपावली पर आंवला पूजना शुभ है
झालर देव दीपावली के लिए ठीक नहीं है। इसको हटा देना चाहिए। ये आंखों के लिए खतरनाक है। देव दीपावली पर दीपक जलाकर हमारे अंदर देवत्व आएगा। देव दीपावली पर आंवला का पूजन, पवित्र नदी में स्नान करना, नदी नहीं तो तालाब में ही करना। शाम को 1, 3, 5 दीये जलाना काफी शुभ माना जाता है।