प्रयागराज में गॉल ब्लैडर (पित्त की थैली) के कैंसर के मरीज सबसे ज्यादा मिल रहे हैं। पूरे विश्व में नंबर वन पर है प्रयागराज। यहां 8 से 12% पित्त की थैली के कैंसर के मरीज मिल रहे हैं जबकि यह आंकड़ा पूरे विश्व में महज 2% ही है। यह कहना है कि कमला नेहरू मेमोरियल कैंसर हास्पिटल व क्षेत्रीय कैंसर सेंटर की कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ. राधा रानी घोष का।
उन्होंने बताया कि बीते 5 सालों में पित्त की थैली के कैंसर के केस बढ़े हैं। इसका कारण गंगा का दूषित जल माना जा रहा है। इसके लिए ICMR (इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च) का पब्लिक बेस्ड केस रजिस्टर प्रोजेक्ट चल रहा है जिसमें हम लोग यह शोध कर रहे हैं कि ऐसा क्या है जो प्रयागराज में पित्त की थैली के कैंसर मरीज ज्यादा मिल रहे हैं। इसके लिए हम लोग यहां आने वाले मरीजों पर शोध कर रहे हैं।
डॉ. राधी रानी घोष, कैंसर यूनिट की विभागाध्यक्ष हैं।
स्तन कैंसर के बाद दूसरे नंबर पर है यह कैंसर
डॉ. राधा रानी बताती हैं कि स्तन कैंसर पहले नंबर पर है। इसके बाद दूसरे नंबर पर सबसे ज्यादा कैंसर के केस पित्त की थैली के मिल रहे हैं। उन्होंने बताया कि पहले बच्चेदानी के मुंह का कैंसर पहले नंबर पर था लेकिन अब यह तीसरे नंबर पर पहुंच गया है। इसमें डाक्टरों के साथ साथ सरकार का भी विशेष योगदान रहा। बच्चेदानी के कैंसर के मरीजों की संख्या तो कम हुई लेकिन पित्त की थैली के कैंसर के मामले बहुत तेजी से बढ़ गए।
कमला नेहरू कैंसर हास्पिटल में प्रतिवर्ष 6 से 7 हजार कैंसर के मरीज मिलते हैं जिसमें 20% स्तन कैंसर के मरीज होते हैं और करीब 12% मरीज गॉल ब्लैडर के होते हैं।
OPD में मरीजों का इलाज करतीं डॉ. राधा रानी घोष
19 साल की युवती भी इस कैंसर से ग्रसित
गॉल ब्लैडर के कैंसर कम उम्र के लोगों को भी हो सकता है। डॉ. घोष बताती हैं कि हैं कि अभी हाल में ही एक 19 साल की युवती उनकी ओपीडी में दिखाने आई। आशंका होने पर उन्होंने पूरी जांच कराई तो पता चला कि वह गॉल ब्लैडर कैंसर की चपेट में है। हमने उसका इलाज शुरू कर दिया है। इसी तरह 30 से 35 साल के कई ऐसे मरीज आ रहे हैं जो गाॅल ब्लैडर के कैंसर से ग्रसित हो रहे हैं।
साइलेंट होता है पित्त की थैली का कैंसर
डॉ. राधा रानी का कहना है कि पित्त की थैली का कैंसर बहुत साइलेंट होता है। यही कारण है कि मरीज को इसकी जानकारी नहीं हो पाती है और वह धीरे धीरे एडवांस स्टेज में पहुंच जाता है। जब दर्द बढ़ती है तब वह डाक्टर के पास पहुंचता है। जब तक यह पता चल पाता है कि मरीज पित्त की थैली के कैंसर से ग्रसित है तब बहुत देर हो गया होता है। इसमें डाक्टर भी कुछ नहीं कर पाते हैं। यदि पहले या दूसरे स्टेज पर यह बीमारी पकड़ में आ जाए तो इसका इलाज संभव है।
उन्होंने कहा कि यदि पेट में ज्यादा गैस बन रहा है या पेट हमेशा दर्द होता है तो एक अल्ट्रासाउंड जरूर करा लें इसमें पता चल जाएगा कि क्या स्थिति है।