आज से 108 साल पहले महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने एक सिद्धांत दिया था। सापेक्षता का सिद्धांत। इसमें कई उप सिद्धांतों की चर्चा थी, जिसमें से एक था ब्लैक होल।
इसके तहत उन्होंने ब्लैक होल से निकलने वाले तरंगों के बारे में भी बताया था। उन्होंने कहा था कि जब दो नजदीकी तारों की मौत हो जाती है, तो वे ब्लैक होल बन जाते हैं। वहीं, वे आपस में टकराते हैं तो उनसे कुछ गुरुत्वीय तरंगे पैदा होती हैं। ये तरंगे पूरे ब्रह्मांड में फैलती हैं। इनको मापने का कोई तरीका इंसान के पास हो, तो ब्रह्मांड की उत्पत्ति से जुड़ीं कई सीक्रेट जानकारियां डीकोड हो सकतीं हैं।
अल्बर्ट आइंसटीन।
इस सिद्धांत के 100 साल बाद 14, सितंबर, 2015 में अमेरिका के LIGO डिटेक्टर्स ने पहली बार ब्लैक होल के टकराकर निकलने वाली गुरुत्वीय तरंगों को डिटेक्ट किया गया था। वे तरंगे 130 करोड़ साल पहले निकलीं थीं। अमेरिका और यूरोप के बाद अब भारत भी इन तरंगों को पहचानकर स्टडी करने वाले देशों में शुमार हो गया है। IIT-गांधीनगर, राजा रमन्ना इंस्टीट्यूट और BHU समेत देश भर में खगोल वैज्ञानिक इन तरंगों पर रिसर्च कर ब्लैक होल के रहस्यों पर काम करेंगे।
अमेरिकी LIGO वेधशाला से परीक्षण करते वैज्ञानिक।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) स्थित DST सेंटर में आए इस प्रोजेक्ट के प्रमुख सदस्य और IIT-गांधीनगर के खगोल वैज्ञानिक प्रोफेसर आनंदसेन गुप्ता ने कहा कि अमेरिका की मदद से महाराष्ट्र के नांदेड़ में एक तरंगीय वेधशाला (LIGO-Laser Interferometer Gravitational-wave Observatory) तैयार की जा रही है। भारत सरकार द्वारा दिए गए 2600 करोड़ रुपए से तैयार होने वाली यह वेधशाला अगले 5 साल में एक्टिव हो जाएगी। प्रो. सेनगुप्ता सेंटर में एक वर्कशॉप को संबोधित कर रहे थे। जिसे BHU से फिजिक्स डिपार्टमेंट के खगोल वैज्ञानिक डॉ. राघवेंद्र चौबे और डॉ. अलकेंद्र सिंह ने आयोजित कराया था।
IIT-गांधीनगर के खगोलविद प्रो. आनंद सेनगुप्ता।
L- शेप के डिटेक्टर्स और 4 Km लंबी वैक्यूम पाइपलाइन
यहां पर L- शेप के डिटेक्टर्स और 4 किलोमीटर लंबी वैक्यूम पाइपलाइन बनाई जा रही है, जो गुरुत्वीय तरंगों की एनालिसिस करेगी। धरती के तरंगों से अर्थ है कि दो ब्लैक होल के टकराने से जो वेव्स उठती हैं उसका धरती पर जो भी इफेक्ट होगा। वहीं, इसी तरह की एक वेधशाला और भी बनाई जा रही है जाे कि अमेरिका के कैलिफोर्निया में तैयार हो रही है। यह आकाशीय तरंगों का अध्ययन करेगी। यह अमेरिका की दूसरी वेधशाला होगी।
अमेरिका स्थित LIGO ऑब्जर्वेटरी।
स्टीफन हॉकिंग की थ्योरी अब होगी सिद्ध
प्रो. सेनगुप्ता ने कहा, “आइंस्टीन के बाद महान खगोल वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग ने एरिया लॉ की थ्योरी दी थी। इसमें उन्होंने कहा था कि जब दो ब्लैक होल आपस में टकराते हैं, तो एक बड़ा ब्लैक होल बनता है। इसका जो एरिया है वह दोनों ब्लैक होल्स से बड़ा हो। आज लाइगो डिटेक्टर्स के द्वारा हम उसे वैरिफाई कर पा रहे हैं।” प्रो. सेनगुप्ता ने बताया कि ब्लैक होल को अभी तक गणितीय ऑब्जेक्ट के लिए ही इस्तेमाल किया जाता है। हम लोगों ने ब्लैक होल से गुरुत्वीय तरंगों की खोज की। ऐसे कई ब्लैक होल ब्रह्मांड में हैं। इस पर थ्योरी प्रूफ की गईं हैं। इसको टेस्ट नहीं कर पाए हैं। एक्सपेरिमेंटली प्रूफ कर सकते हैं।
BHU का DST सेंटर। – फाइल फोटो
BHU से बुलाए जाएंगे एस्ट्रो फिजिक्स के वैज्ञानिक
प्रो. सेनगुप्ता ने कहा कि भारत में पहली बार एस्ट्राेनॉमी रिसर्च पर कुछ बड़ा हो रहा है। इसके लिए BHU की साइंटिफिक सोच और यहां के एस्ट्रो फिजिक्स के प्रतिभाशाली छात्रों की भी जरूरत होगी। यहां के रिसर्चर भी नांदेड़ में जाकर इस स्पेस रिसर्च में अपना योगदान देंगे। इसका खाका तैयार कर आमंत्रित किया जाएगा। हम लोगों ने दुनिया भर की 90 साइट को खोजा है जहां पर ये LIGO डिटेक्टर्स स्थापित की जा सकती हैं। वहीं, भारत में महाराष्ट्र को इसलिए चुना गया क्योंकि वहां पर भूकंपीय एक्टिविटी कम होती है। इसलिए डेटा में कोई गड़बड़ी नहीं होगी।
नासा द्वारा 2 दिन पहले जारी इस तस्वीर में काले गोल जगह को ब्लैक होल के रूप में दिखाया गया है।
ब्लैक होल्स और ब्रह्मांड उत्पत्ति का रहस्यों का कनेक्शन
प्रो. आनंदसेन गुप्त ने कहा कि कुछ ब्लैक होल्स तभी बने होंगे, जब बिग-बैंग हुआ होगा। उनकी तरंगे आज भी हम तक पहुंच रहीं हाेंगी। कोई 499 मिलियन प्रकाश वर्ष दूर है तो हजार। वहां पर भी जो तरंगे निकली होंगी वे यदि हम तक आएंगी तो उनका भी परीक्षण कर हम हैरतअंगेज निष्कर्ष दे सकते हैं। आकाश में जो घटना घटती है वह वर्तमान नहीं, बल्कि पुरानी होती है। उसकी लाइट को धरती तक आने में अरबों साल तक लग जाते हैं।
दो तरह के डिटेक्टर्स से करते हैं तरंगो का परीक्षण
ब्लैक होल को मापने के लिए दो तरह के डिटेक्टर्स होते हैं। एक स्पेस बेस डिटेक्टर और दूसरा अर्थ बेस्ड। स्पेस बेस्ड डिटेक्टर के तहत सैटेलाइट से स्टडी होगी। यूरोप की E-Lisa के लिए तीन सैटेलाइट छोड़े गए हैं। भारत में अर्थ बेस्ड डिटेक्टर लगाया जा रहा है। इसकी फ्रिक्वेंसी स्पेस डिटेक्टर से ज्यादा होगी। तारों के टकराने से बहुत भारी गुरुत्वीय तरंग निकलते हैं।
डिटेक्टर ऐसा होना चाहिए जो उस तरंग से इंटरैक्ट करे। इसलिए उसका डिटेक्टर बनाना पड़ेगा।