ज़्यादातर अभिभावक अपने बच्चे को उसकी ज़रूरत से ज़्यादा देने की कोशिश करते हैं। वे उसकी हर बात मानते हैं और क़दम-क़दम पर मदद करते हैं। यदि बच्चा कुछ ग़लत करता है तो अभिभावक उसकी ग़लतियों को छुपाने की कोशिश करने लगते हैं। कुछ अपने बच्चों का सारा दोष दूसरों पर मढ़ने लगते हैं। वे बच्चे को समय रहते ग़लत और सही का अंतर नहीं समझा पाते। नतीजतन वह भविष्य में ग़लतियां दोहराता रहता है और उसका दोष माता-पिता को ही देता है। ऐसी और भी कई ग़लतियां हैं, जिनका नकारात्मक असर बच्चों की परवरिश पर पड़ता है।
असुरक्षा की भावना
किशोरावस्था में बच्चों में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण होना स्वाभाविक है, लेकिन ऐसे में अभिभावक का बच्चे पर नज़र रखना, मोबाइल जांचना, बच्चे को किसी से फोन पर बात करते सुनने की कोशिश करना सही नहीं है। कई बार कुछ अभिभावक अपने बच्चों के साथ मारपीट भी करते हैं पर इन सब बातों का परिणाम यह होता है कि बच्चा अपनी चीज़ों को माता-पिता से छुपाने लगता है। इससे बच्चे का पढ़ाई से ज़्यादा दूसरी बातों में ध्यान लगने लगता है, साथ ही पढ़ाई में आत्मविश्वास कम होने लगता है।
काम से जुड़ी व्यस्तताएं
अभिभावक काम के दबाव के कारण घर पर और स्वयं पर बहुत कम ध्यान दे पाते हैं। इसका दुष्प्रभाव बच्चों की सेहत पर भी होने लगता है। उनमें ग़ुस्सा करना, जल्दी परेशान हो जाना, ज़िद्दी होना और ज़्यादा सोचने लगना जैसे संकेत दिखाई देते हैं। कुछ माता-पिता इससे बचने के लिए बच्चे को अनुशासन में बांधने की कोशिश करते हैं और हमेशा एक आदर्श व्यवहार की उम्मीद करने लगते हैं। इससे बच्चा अभिभावक से चिढ़ने लगता है और घर में बच्चे के साथ बहस जैसी घटनाएं होने लगती हैं। फलस्वरूप बच्चे में ग़ुस्सा और हाइपरएक्टिविटी देखने को मिलती है।
माता-पिता में तनाव
घर का तनाव हमेशा बच्चे में असुरक्षा की भावना भर देता है। ऐसा कई बार देखा गया है कि जब माता-पिता के आपसी रिश्ते अच्छे नहीं होते, तब वे बच्चे से अपने आपको सही और साथी को ग़लत साबित करने की कोशिश करते हैं। किसी ग़लत काम के लिए दूसरे को दोष देने लगते हैं और छोटी-छोटी बातों में ग़लतियां ढूंढते हैं। ऐसे में परिवार में झगड़े बहुत बढ़ जाते हैं और इन सब में बच्चे माता-पिता के बीच फंस जाते हैं। इसका असर यह होता है कि बच्चे में व्यक्तित्व से जुड़ी कई परेशानियां जन्म लेने लगती हैं।
क्या करना चाहिए
– बच्चे के साथ दोस्ताना बर्ताव करें। उसके साथ अपना संवाद अच्छा रखने की कोशिश करते रहें। दिन में एक बार ज़रूर बच्चे के साथ आमने-सामने बैठें और बाते करें। बच्चे के साथ सुबह या शाम को बाहर घूमने जाएं और उसकी बातों को ध्यान से सुनें।
– किशोरावस्था में हॉर्मोनल परिवर्तन के कारण बहुत सारे शारीरिक व मानसिक बदलाव होते हैं। इस वजह से उनके मूड में तेज़ी से बदलाव होते हैं। यदि वह ज़्यादा ग़ुस्सा या बहस करे, तो उसे थोड़े समय के लिए छोड़ दें, क्योंकि सारे बर्ताव कुछ समय के लिए ही होते हैं।
– माता-पिता आपस के तनाव को स्वयं सुलझाएं और उन सब बातों को बच्चे से दूर रखें। उसके सामने किसी तरह की बहस या मनमुटाव को नज़रअंदाज़ करें। अगर किसी बात पर सहमति नहीं बन रही है तो उस पर झगड़ने के बजाय बच्चे से पूछें। इससे बहस झगड़े में नहीं बदलेगी और बच्चे को भी परिवार में अपनी अहमियत महसूस होगी।
– उससे दोस्ताना व्यवहार रखें ताकि वह ख़ुद आपसे सारी बातें साझा करें।
– बच्चे के साथ स्वयं पर भी ध्यान दें, क्योंकि हम हमेशा बच्चे से एक आदर्श व्यवहार की उम्मीद करते हैं पर इसके लिए घर के अंदर का वातावरण भी अच्छा होना चाहिए। लिहाज़ा स्वयं भी उन्हीं नियमों का पालन करें। – बच्चे को कुछ बनाने के बजाय उसे कुछ बनने में मदद करें। घर और बाहर के काम सिखाएं और प्रोत्साहित करें कि वह हर काम स्वयं करके देखे। ज़रूरत पड़ने पर ही मदद करें, अनावश्यक नहीं।