वाराणसी में रामनगर की रामलीला जितनी खास है। उसे देखने वाले भी उतने ही निराले है। अपने इसी ठाट बाट के कारण हर रोज रामलीला देखने वाले भक्त अनूठे हो जाते है।रामनगर की रामलीला शाम 5 बजे से शुरू होकर रात 9 बजे तक चलती है। लीला में शामिल होने के लिए भक्त कुंड में स्नान के बाद माथे पर शुद्ध चंदन का त्रिपुंड, सफेद धोती कुर्ता का खास परिधान और खुशबूदार इत्र लगाकर तैयार होते है।
रामलीला का 10वां दिन
केवट तो साधारण सा नाविक ही था। उसने सुन रखा था कि प्रभु के पैर पड़ते ही पत्थर, नारी बन गई थी। उसे भी डर था कि कहीं प्रभु के पैर पड़ते ही उसकी नाव स्त्री न बन जाए। यही सोचकर उसने कहा प्रभु के पैर धोए बिना अपनी नाव में नहीं बैठाएगा। प्रभु वन में बढ़ते गए तो उनकी सहायता के लिए ऋषि-मुनियों का मिलन होता रहा। रामनगर की रामलीला के 10 वें दिन श्रीराम के गंगा और यमुना नदी पार कर चित्रकूट पहुंचने के प्रसंग जीवंत हुए। लीला के आरंभ में केवट का प्रसंग हुआ।
पखारकर चरणामृत लेने के बाद उन्हें नाव में बैठाकर पार उतारा। पार उतार कर जब श्रीराम उतराई के रूप में मुंदरी (अंगूठी) देने लगे तो केवट ने मना कर दिया। निषाद राज चार दिन और सेवा का अवसर मांगते हैं। सभी को साथ लेकर राम प्रयाग पहुंचे। त्रिवेणी स्नान कर भारद्वाज मुनि के आश्रम में रात्रि विश्राम किया। प्रातः मुनि के शिष्य उन्हें यमुना के पास पहुंचाते हैं। यमुना पार करके वे ग्रामवासियों से मिलते हैं। लक्ष्मण उनसे वाल्मीकि आश्रम का पता पूछते हैं। वहां पहुंचकर श्रीराम कुंटिया बनाने का स्थान पूछते हैं।