अयोध्या में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा 22 जनवरी को होगी। मंदिर निर्माण के बाद प्राण प्रतिष्ठा के समय मंदिर के शिखर पर लगने मुख्य ध्वज स्तंभ सहित कुल 7 स्तंभ और दानपात्रों पर जालोर के आर्टिस्ट की कारीगरी देखने को मिलेगी। इसके साथ ही मंदिर के 42 दरवाजों पर लगने वाले ब्रास के हार्डवेयर समेत घंटियों के 450 कड़ों को भी जालोर के आर्टिस्ट ने डिजाइन किया है।
सोमवार दोपहर 3 बजे शिखर स्तंभ अयोध्या पहुंचे थे। इसके बाद इन्हें मंदिर परिसर में रखवाया गया है। स्तंभ पर कार्विंग (नक्काशी) करने वाले दीपेश कुमार का दावा है कि प्योर ब्रास (तांबा) से बने ये स्तंभ हजारों सालों तक सुरक्षित रहेंगे। मुख्य स्तंभ के बारे में बताते हुए दीपेश कहते हैं कि 44 फीट ऊंचे इस मुख्य शिखर स्तंभ का वजन साढ़े 5 हजार किलो है।
राम मंदिर में लगाए जाने वाले मुख्य शिखर स्तंभ को बनाने में 1 साल का समय लगा। इसकी फिटिंग जोर नक्काशी का कार्य जालोर के आर्टिस्ट ने किया है।
1 साल में बनाए 7 स्तंभ
दीपेश बताते हैं- राम मंदिर में लगने वाली हर चीज को वास्तु के हिसाब से डिजाइन किया गया है। चाहे वह एक ईंट ही क्यों न हो। अयोध्या नगरी में बन रहे राम मंदिर के लिए 7 स्तंभों का निर्माण किया है। इसमें जालोर के कुल 12 आर्टिस्ट ने काम किया। सोने की तरह नजर आने वाले इन स्तंभ को बनाने में 1 साल का समय लगा। सभी स्तंभों का निर्माण प्योर ब्रास से किया गया है, ये बिलकुल सोने जैसे नजर आते हैं। इस काम के लिए अलग-अलग कंपनियों से 40 कारीगरों को लगाया गया था।
वर्कशॉप में स्तंभ पर नक्काशी के लिए 6 महीने का समय लगा था।
44 फीट लंबा साढ़े पांच हजार वजनी है शिखर स्तंभ
दीपेश बताते हैं इसे सांचे में ढालने से लेकर फिटिंग और नक्काशी के लिए जालोर के कारीगर लगे थे। स्तंभ फिटिंग का काम जालोर के दिगांव निवासी हरचंदराम और कन्हैयालाल सुथार ने संभाला। मैंने इसमें नक्काशी का काम किया है। जिसमें 6 महीने लग गए। नक्काशी का काम बेहद करीब से किया जाने वाला काम है। 44 फीट लंबे और 5500 किलो वजनी इस स्तंभ को बनाने में मंदिर के वास्तु का पूरा ध्यान रखा गया। हमें इसके वजन, ऊंचाई और नक्काशी को लेकर निर्देश मिले थे। इसी के हिसाब से इसका निर्माण करना था।
मुख्य शिखर स्तंभ समेत 6 और छोटे स्तंभ अयोध्या पहुंच चुके हैं। जल्द ही पूजन के बाद इन्हें मंदिर में लगाया जाएगा।
कास्टिंग रिंग से आई खूबसूरती
उन्होंने बताया कि स्तंभ पर नक्काशी के रूप में फूल और मनमोहक दृश्यों को उकेरा गया है। दीपेश ने बताया कि पाइप का डायामीटर यानी चौड़ाई साढ़े 9 इंच है। इस पर एक ही आकर की 21 रिंग समान दूरी पर बनाई गई है। इन सभी रिंग का वजन भी एक समान ही है। 100 किलो की ये रिंग पूरे स्तंभ पर कास्टिंग के रूप में बनाई गई है। इससे स्तंभ को मजबूती भी मिलती है और इनकी खूबसूरती भी बढ़ गई है।
पुलिस प्रोटेक्शन के साथ पहुंचा थे अयोध्या
दीपेश ने बताया- हमारी कंपनी अहमदाबाद की है। ऐसे में यहां से शुक्रवार 5 जनवरी को दोपहर 12 बजे ध्वज को अहमदाबाद से अयोध्या के लिए रवाना किया गया था। इसे 50 फीट लंबे ओपन ट्रक रखवाया गया था। साथ ही 3 गाड़ियों में पुलिस प्रोटेक्शन भी पूरे रास्ते साथ रही थी। पूरे वरघोड़े के साथ पूजा कर इसे रवाना किया गया था। साथ ही कारीगरों को भी भेजा गया था।
इस दौरान अहमदाबाद के मुख्यमंत्री भूपेंद्र भाई पटेल और रामानंदाचार्य जी महाराज ने इसे रवाना किया था। इसे अयोध्या तक पहुंचने में 3 दिन का समय लगा। अब इसे मंदिर परिसर में रखा गया है। जहां से इसे बाद में मंदिर में लगाया जाएगा। हमने एहतियात के तौर पर यहां स्थाई बेस भी तैयार किया है। ताकि जरूरत पड़ने पर या स्तंभ से संबंधित कोई समस्या आने पर कारीगरों से तुरंत ठीक करवाया जा सके।
दीपेश के मुताबिक स्तंभ निर्माण में वास्तु शास्त्र का पूरा ख्याल रखा गया है। मंदिर के अनुसार ही इसका वास्तु किया गया है।
दुनिया देखेगी जालोर की कारीगरी
दीपेश ने बताया- इसके अलावा 6 स्तंभ और बनाए गए हैं। इन स्तंभों की लंबाई 21 फीट है और वजन 750 किलो रखा गया है। ये स्तंभ भी मंदिर निर्माण के समय अलग-अलग जगह लगाए जाएंगे। इसके साथ ही रामलला के मंदिर में लगने वाले दरवाजों पर ब्रास के हार्डवेयर का निर्माण भी हमारी कंपनी से ही किया गया है। मंदिर में घंटियों और झूमर को लटकाने के लिए 450 कड़ियों को भी जालोर के आर्टिस्ट ने बनाया है। हमने कुल 10,000 किलो ब्रास का यूज किया है।
पूजा के बाद विधि-विधान से स्थापित होंगे
दीपेश कहते हैं- इन स्तंभों को कहां लगाया जाएगा ये मंदिर समिति की ओर से डिसाइड होगा। लेकिन शिखर ध्वजा के बारे में बात करें तो 22 जनवरी को प्राण-प्रतिष्ठा होगी। अभी भी मंदिर में कई जगह निर्माण जारी है। जैसे-जैसे काम पूरा होता जाएगा वैसे ही नए निर्माण में ब्रास की चमक शामिल की जाएगी। शिखर ध्वज मंदिर के ऊपर लगाया जाएगा। मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा के बाद इन ब्रास के स्तंभों समेत हर एक चीज की पूजा की जाएगी और पूरे विधि विधान के हिसाब से इन्हें मंदिर परिसर में स्थापित किया जाएगा।
राम मंदिर के निर्माण में उपयोग आने वाली अलग-अलग ब्रास की वस्तुओं का निर्माण किया गया है। इसमें कड़ियां, ताले और हार्डवेयर का निर्माण किया गया है। अहमदाबाद स्थित फैक्ट्री में गुजरात के सीएम भूपेंद्र भाई पटेल भी पहुंचे थे।
1950 से कर रहे हैं स्तंभों का निर्माण
बता दें कि राम मंदिर के मुख्य स्तंभ सहित अन्य ब्रास के सामानों के निर्माण का काम गुजरात के अहमदाबाद के गोता में स्थित अंबिका इंजीनियरिंग के भरत भाई मेवाड़ा को मिला था। जो करीब 1950 साल लगातार मंदिर में उपयोग होने वाले ब्रास के सामानों को तैयार करने के काम कर रहे हैं। कंपनी के साथ जुड़े होने के कारण जालोर जिले शंखवाली गांव निवासी दीपेश कुमार को कार्विंग का काम मिला। वहीं स्तंभ फिटिंग का काम जालोर के दिगांव निवासी हरचंदराम और कन्हैयालाल सुथार को मिला।