नहाय खाय के साथ शुक्रवार से सूर्य उपासना के सबसे बड़े व्रत डाला छठ 2022 की शुरुआत हो रही है। छठ उपासना के लिए बाजारों में श्रद्धालुओं की भीड़ देखी गई तो वहीं संगम से लेकर के यमुना किनारे स्थित बारादरी घाट पर दलदल होने से श्रद्धालुओं को काफी दिक्कत हो रही है। प्रशासनिक तैयारियां घाटों पर अधूरी दिख रही हैं। गंदगी का अंबार है। ऐसे में श्रद्धालु कैसे स्नान दान करेंगे यह चिंता का विषय है।
तैयारियों को लेकर प्रशासन को चबाने पड़े नाको चने
पूर्वांचल विकास एवं छठ आयोजन समिति के अध्यक्ष अजय राय का कहना है कि गंगा यमुना में देर से आई बाढ़ के चलते इस साल संगम तट पर सूर्य की उपासना के महापर्व छठ की तैयारी को लेकर प्रशासन को नाको चने चबाने पड़ रहे हैं। बावजूद इसके संगम के घाटों पर कल शाम और परसों सुबह व्रती महिलाएं सूर्य को अर्घ्य कैसे देंगी ये सवाल बना हुआ है । पिछले साल की तुलना में इस बार संगम पर छठ के आयोजन के लिए केवल 40% जगह मिल पाई है । गंगा-यमुना का पानी हर रोज़ 10 फीट पीछे हट रहा है और भारी दलदल छोड़ के जा रहा है । सवाल ये भी है कि घाटों पर पूजा की वेदी कैसे बनेगी । दलदल को कम करने के लिए घाटों पर बालू डलवाया जा रहा है साथ ही ज़मीन को समतल करने की कोशिश भी की जा रही है लेकिन इससे भी मुश्किल बहुत कम होती नज़र कम होती नज़र नहीं आती ।
संतान को दीर्घायु, सौभाग्य और खुशहाली मिलती है
छठ मैया की पूजा कार्तिक शुक्ल की षष्ठी को की जाती है। दिवाली के 6 दिन बाद यह पूजा नहाय खाय के साथ शुरू होती है। सूर्य उपासना का यह पर्व बिहार, उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में धूमधाम से मनाया जाता है। इस खास दिन पर सूर्य देव और छठी मैया की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है। सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है। ऐसी मान्यता है कि छठ मैया की पूजा करने से संतान को दीर्घायु, सौभाग्य और खुशहाली मिलती है।
छठ में 36 घंटे निर्जला व्रत रखती हैं महिलाएं
पूर्वांचल छठ पूजा एवं विकास समिति के सदस्य कृष्णानंद तिवारी ने बताया कि इसमें छठी मैया का विधि-विधान से पूजन किया जाता है। इस दिन महिलाएं 36 घंटे का निर्जला व्रत रखती हैं। छठी मैया की पूजा के बाद महिलाएं व्रत समाप्त करती हैं। पूरी दुनिया में छठी मैया की पूजा सबसे कठिन मानी जाती है। कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को नहाय और खाय से शुरू होने वाली पूजा में विशेष रीति रिवाजों का पालन करना होता है।
इस बार 31 अक्टूबर को उगते सूर्य को देना होगा अर्घ्य
कार्तिक शुक्ल सप्तमी के उगते सूरज को अर्घ्य देेने के बाद चौथे दिन सूर्योदय से पहले ही भक्त सूर्य देव की दर्शन के लिए कमर भर पानी में खड़े होकर प्रतीक्षा करते हैं। जैसे ही सूर्य देव उगना शुरू होते हैं उन्हें अर्घ्य दिया जाता है। व्रत रखने वाली महिलाएं अर्घ्य देने के बाद प्रसाद का सेवन करके व्रत का पारण करती हैं। कार्तिक शुक्ल पंचमी को उपवास की शुरुआत होती है। इस दिन को खरना कहा जाता है। सुबह स्नान के बाद व्रत शुरू हो जाता है।
क्या क्या होता है ?