बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री को धर्मांतरण के मामले पर छत्तीसगढ़ के मंत्री ने चैलेंज दिया है। आबकारी मंत्री कवासी लखमा ने शुक्रवार को कहा कि राज्य में धर्मांतरण के मामले नहीं बढ़े हैं। अगर वे इसे साबित कर दें तो मैं राजनीति छोड़ दूंगा और अगर ऐसा नहीं हो रहा है तो उन्हें पंडिताई छोड़नी होगी।
दरअसल, पंडित धीरेंद्र शास्त्री अभी रायपुर में हैं। वे यहां रामकथा करने पहुंचे हैं। उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा था, कि छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण के मामले बढ़े हैं। उन्होंने बस्तर का जिक्र किया था और कहा था कि वहां के सनातन हिंदुओं को दूसरे धर्म में जाने देने से रोकना होगा। इसके बाद बस्तर के नेता और राज्य सरकार में आबकारी मंत्री कवासी लखमा ने उन्हें बस्तर चलने और इसे साबित करने कहा। लखमा ने तो यहां तक कह दिया कि बाबा को कैसे पता चला, क्या उन्हें सपना आया था।
धीरेंद्र शास्त्री ने कहा- सनातनियों में एकता नहीं है..
धीरेंद्र शास्त्री की कथा सुनने करीब 4 लाख लोगों की भीड़।
रायपुर में बोले बाबा- नागपुर से कोई आया हो तो सामने आए
पंडित धीरेंद्र शास्त्री ने शुक्रवार को रायपुर के दहीहंडी मैदान में हजारों की भीड़ के साथ अपना दरबार लगाया। उन्होंने अपनी कथा की शुरुआत में फिर नागपुर के चैलेंज का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि वैसे तो इन पर बात करना समय खराब करना है, लेकिन फिर भी कहता हूं कि यदि वहां से कोई आया हो तो सामने आए, ठठरी बांध देंगे। नागपुर महाराष्ट्र की कथा सात दिन की थी। वहां कुछ लोगों ने कहा कि चुनौती दी तो भाग गए, हमने उन लोगों को रायपुर की चुनौती दी, अगर कोई आया हो तो सामने आए, हमें अपने इष्ट पर पूरा भरोसा है..हम गीला करके भेजेंगे..गीला करके..। उन्होंने कहा जो आरोप लगा रहे हैं कि यह सब पाखंड है तो उनसे कह रहे हैं, कि ना तो हम किसी को बुलाते हैं, ना दक्षिणा लेते हैं और जब दक्षिणा ही नहीं लेते तो अंधविश्वास कैसा।
संतों को टारगेट करने फंडिंग हो रही है
पंडित धीरेंद्र कृष्ण ने कहा था कि संतों को घेरने के लिए बड़ी-बड़ी मिश्नरियां लगी हैं। ये पोषित लोग हैं। संतों को टारगेट करना इनका काम है। देश में दो तरह के लोग हैं, एक- जो बागेश्वर के साथ हैं। दूसरे- जो खिलाफ लोग हैं। वर्तमान में रामचरित मानस को नफरत फैलाने वाला बताया जा रहा है, जहर फैलाने वाला बताया जा रहा है। हिंदू चुपचाप बैठा है। एक शिक्षा मंत्री महोदय ने ऐसा बयान दिया है, हमें तो हंसी आ रही है।
23 जनवरी तक चलेगी कथा
बीते 17 जनवरी से रायपुर में पंडित धीरेंद्र शास्त्री महाराज राम कथा करने पहुंचे हैं। ये कार्यक्रम 23 जनवरी तक शहर के गुढ़ियारी इलाके में चलेगा। इस बीच पंडित धीरेंद्र शास्त्री महाराज पर अंधविश्वास फैलाने के आरोप भी लग रहे हैं। इनका जवाब देने मीडिया के सामने आए, बाबा जी ने कहा- मैं कभी नहीं कहता कि मैं कोई संत हूं, मैं साधारण आदमी हूं।
नारायणपुर से भड़की थी धर्मांतरण की आग
नारायणपुर में 2 जनवरी को ईसाई धर्म मानने वाले लोगों के घरों पर हमला हुआ था। इस इलाके के सबसे बड़े रोमन कैथोलिक चर्च पर हमला हुआ। ये हमला बस्तर के सैकड़ों गांवों में चल रहे उस वर्ग विभाजन के बिगड़ते माहौल का संकेत है जहां ईसाई धर्म मानने वाले आदिवासी और मूल धर्म के आदिवासियों के बीच दुश्मनी गहरा रही है।
चर्च में की गई थी तोड़फोड़।
भुमियाबेड़ा, तेरदुल, घुमियाबेड़ा, चिपरेल, कोहड़ा,ओरछा, गुदाड़ी और ऐसे ही कई नाम। ये नाम हैं उन गांवों के जहां की आदिवासी आबादी ने पिछले 20-25 साल में तेजी से कनवर्जन, मतलब अपना आदिवासी धर्म छोड़कर ईसाई धर्म मानना शुरू कर दिया है। जानकार कहते हैं कि नारायणपुर जिला मुख्यालय से जो गांव जितने दूर, घने जंगल में हैं वहां की आबादी उतनी ही तेजी से क्रिश्चियन धर्म अपना रही है। किसी किसी गांव में इसका प्रतिशत 90 फीसदी तक है, हालांकि ये गांव छोटे और 100-200 आबादी या 20-30 घर वाले भी हैं। आदिवासियों के ऐसा करने के कारण कई हैं, लेकिन जो सबसे ज्यादा स्वीकारे जाने वाला कारण है वह है चर्च की प्रार्थना से तबीयत और जीवन का बेहतर हो जाना। इसकी हकीकत कुछ भी हो, लेकिन हर कनवर्टेड क्रिश्चियन यह कहता नजर आता है।
प्रार्थना से ठीक होने की बात
पूरे इलाके में या कहें पूरे बस्तर में ही ये प्रार्थना से ठीक होने की बात इतनी जबरदस्त तरीके से फैली है कि नारायणपुर की शांतिनगर सहित कुछ बस्तियों और दूरदराज के गांव में भी ईसाई समुदाय का एक प्रार्थना घर ( इसका मतलब गांव के किसी घर का ही एक कमरा होता है) बन गया है। एड़का, भाटपाल, रेमावन, चिंगरान, बेनूर, गरांजी जैसे कई गांव हैं जिनमें पिछले कुछ सालों में प्रार्थना घर बने हैं। इन प्रार्थना घरों में हर रविवार अनिवार्य रूप से आराधना होती है। वाद्ययंत्रों के साथ भजन-कीर्तन गाए जाते हैं। इसमें कभी-कभी बड़े गांवों, जिला मुख्यालय से पास्टर भी आते हैं प्रवचन देते हैं। इसमें शामिल होने के लिए पूरे गांव जो कि 20-30 घर ही होते हैं उन्हें बुलाया जाता है। बीमार, बूढ़ों, गरीब, परेशान लोगों का नाम लेकर प्रार्थना की जाती है। ऐसे में किसी का भला हुआ तो उसकी प्रार्थना में आस्था बढ़ जाती है फिर ईसाई धर्म में भी। यहीं से लोगों को मदद करने की बात भी सामने आती है।
भीड़ ने पुलिस से भी की थी मारपीट।
ईसाई और मूल आदिवासियों के बीच विवाद का सबसे बड़ा कारण कब्र
ईसाई बन चुके आदिवासियों और मूलधर्म के आदिवासियों के बीच रीति-रिवाजों को नहीं मानने, गायता पखना (इसे ईश्वर का स्वरूप मानकर विवाद का निपटारा किया जाता है) को नहीं मानने जैसे झगड़े तो हैं ही, सबसे बड़ा झगड़ा है शव नहीं दफनाने देने का है। ईसाई धर्म मान चुके व्यक्ति के शव को मूलधर्म के आदिवासी अब गांव की सार्वजनिक जमीन पर दफनाने नहीं दे रहे हैं। उनका कहना है कि ईसाई धर्म के व्यक्ति की कब्र होने से जमीन दूषित हो जाएगी। हर महीने इस तरह के विवाद के कई मामले बस्तर के अलग-अलग हिस्सों से सामने आ रहे हैं। ईसाई बन चुके आदिवासी अब आरोप लगा रहे हैं कि उनके परिवार के लोगों की कब्र खोदकर शव गांव से बाहर फेंके जा रहे हैं। 1 से 2 जनवरी के बीच जो खूनी संघर्ष हुआ उसका मूल कारण भी नारायणपुर के भाटपाल में 23 अक्टूबर को एक कनवर्टेड महिला के शव को दफनाने नहीं देना है। करीब 3 दिन यहां जमकर हंगामा हुआ था और वहीं से दोनों गुट अपने-अपने लोगों को एकत्र कर रहे थे। पुलिस-प्रशासन को भी इसकी जानकारी थी, लेकिन कोई आधार नहीं होने के कारण कार्रवाई नहीं की गई।