राज्य सरकार ने मुफ्त शिक्षा देने की घोषणा की थी। इसके लिए बकायदा निर्देश भी जारी किए गए थे। इसके बाद स्कूलों ने फीस वसूलने का नया रास्ता बना लिया है। दरअसल, सरकारी स्कूलों में मुफ्त शिक्षा के नाम पर केवल ट्यूशन फीस मुफ्त की गई, लेकिन नवमीं में बारहवीं तक छात्रों को विज्ञान प्रायोगिक शुल्क, परीक्षा शुल्क और खेल मैदान का शुल्क लग रहा है। इन सभी मदों को मिलाकर इस बार हाईस्कूल के छात्रों से 410 रुपए और हायर सेकेंडरी के छात्रों से 445 रुपए लिए जाएंगे। पिछले साल यह 30-30 रुपए कम थे। यही नहीं, सरकारी स्कूलों में शाला विकास समिति के नाम पर नवमीं से बारहवीं तक के छात्रों से खामोशी से 400 से 800 रुपए तक शुल्क वसूला जा रहा है।
स्कूल शिक्षा विभाग ने पिछले दिनों फीस को लेकर नया निर्देश जारी किया है। इसके तहत हाई स्कूल के छात्रों को अलग-अलग मदों में 410 रुपए प्रतिवर्ष और हायर सेकेंडरी के छात्राें को प्रतिवर्ष 445 रुपए शुल्क देना होगा। भास्कर की पड़ताल में यह बात सामने आई कि कक्षा पहली से आठवीं के लिए कोई फीस नहीं ली जाती है। लेकिन नवमीं से बारहवीं तक के छात्रों को अलग-अलग मदों में शिक्षा विभाग से तय शुल्क लग रहा है। शाला विकास समिति के लिए भी पैसे लग रहे हैं।
इसके अलावा माध्यमिक शिक्षा मंडल की बोर्ड परीक्षा के लिए भी अलग से शुल्क देने पड़ते हैं। जबकि सरकारी स्कूलों में अधिकांश छात्र गरीब व मध्यम वर्ग से हैं। ग्रामीण इलाकों के अधिकांश छात्र इन्हीं स्कूलों में हैं। उनके लिए फीस की राशि जुटाना भी मुश्किल होता है। रायपुर जिला और ग्रामीण क्षेत्र के सरकारी स्कूलों के शिक्षकों ने बताया कि ऐसे बच्चे बड़ी संख्या में हैं, जिनके लिए 20 रुपए फीस भी दे पाना कठिन रहता है और वे माफ करने की बात करते हैं। ऐसे में शुल्क 30 रुपए बढ़ाना ठीक नहीं है। इसके बजाय हाई और हायर सेकेंडरी की फीस माफ होनी चाहिए।
फीस के रूप में 30 रु. बढ़ाए तीन करोड़ से ज्यादा की कमाई
सरकारी स्कूलों में बढ़ी हुई 30 रुपए की राशि भले ही छोटी है, लेकिन इससे सालभर में स्कूल शिक्षा विभाग 3 करोड़ रुपए से अधिक की कमाई करेगा। राज्य के सरकारी स्कूलों में नवमीं से लेकर बारहवीं तक के दस लाख से अधिक छात्र हैं। सभी छात्रों के लिए यह फीस अनिवार्य है।
कॉलेजों में भी प्राइवेट स्टूडेंट से लाइब्रेरी के नाम पर शुल्क
सरकारी स्कूलों ही नहीं, यूनिवर्सिटी व कॉलेजों में भी अलग-अलग मदों में फीस ली जा रही है। पं. रविशंकर विश्वविद्यालय की वार्षिक परीक्षा के लिए पिछले दिनों आवेदन मंगाए गए थे। इसमें प्राइवेट छात्रों से लाइब्रेरी के नाम पर नया शुल्क लिया गया है। जानकारों के मुताबिक रविवि में वार्षिक परीक्षा के नाम पर अलग-अलग कक्षाओं के लिए छात्रों से 960 रुपए से लेकर 2 हजार रुपए तक शुल्क के नाम पर लिए जा रहे हैं। अन्य मदों में अंकसूची शुल्क, छात्र कल्याण शुल्क, स्थाई निधि शुल्क, बिल्डिंग, फर्नीचर शुल्क, भौतिक कल्याण शुल्क, केंद्र शुल्क, कुलपति आकस्मिक सहायता निधि, पंजीयन शुल्क, अनुमति शुल्क व परीक्षा विकास जैसे शुल्क हैं। उच्च शिक्षा में भी सवाल उठ रहा है कि जब परीक्षा फीस के नाम पर छात्र एकमुश्त फीस अदा कर देते हैं। तब अलग-अलग मदों में क्यों पैसे लिए जाते हैं? परीक्षा शुल्क के अलावा अन्य मदों में ली गई राशि पांच सौ से सात सौ रुपए तक है। इस तरह से वार्षिक परीक्षा के फार्म भरने के लिए छात्रों को ज्यादा शुल्क देना पड़ता है। कई छात्रों ने यह भी कहा कि जब प्राइवेट छात्र यहां की लाइब्रेरी का उपयोग नहीं करते हैं। वे किताब नहीं ले सकते हैं फिर उनसे इसकी फीस क्यों ली जाती है। जिस तरह से शासन ने पीएससी व व्यापमं की शुल्क माफ की है। उसी तरह राज्य की शैक्षणिक संस्थानों से परीक्षा के नाम पर ली जाने वाली अलग-अलग फीस पर भी रोक लगाई जानी चाहिए। ताकि छात्रों पर आर्थिक बोझ न पड़े।
मुफ्त के अलावा शुल्क
“फीस संबंधित निर्देश स्कूलों को भेज दिए हैं। इस वर्ष केवल स्काउट के शुल्क में मामूली वृद्धि हुई है, बाकी फीस यथावत है।”
– आरएल ठाकुर, जिला शिक्षा अधिकारी-रायपुर
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