होली के पर्व को भगवान श्रीराम के वंशज महाराना रघु से जोड़ा जाता है. कहा जाता है कि, अयोध्या में त्रेतायुग में महाराजा रघु के शासनकाल के दौरान होली (Holi) की शुरुआत हुई थी.
होली रंगों का त्योहार है, लेकिन इसके कितने रंग है यह कहना मुश्किल है. होली अपने ही रंग में लोगों को रंग लेती है और जो इसके रंग में डूब गया वह मतवाला हो जाता है. फिर चाहे वह बृज में कृष्ण और राधा की प्रेम की प्रतीक वाली होली हो, श्मशाम में चिता के भस्म से खेली जाने वाली शिव की अद्भुत होली या फिर अयोध्या में राम-सीता की होली. होली के कई मनोरम दृश्य सदियों से देखने को मिल रहे हैं.
सियाराम लखन खेलैं होरी, सरजू तट राम खेलैं होरी,
राम जी मारैं भरी पिचकारी,
भरी पिचकारी- हो री पिचकारी लाज भरी सीता गोरी…
अबीर गुलाल उड़ावन लागैं, उड़ावन लागै- हो उड़ावन लागैं,
सब लायें भरी-भरी झोरी, सरजू तट राम खेलैं होरी.
होली के इस गीत में भगवान राम और सीता के बीच होली खेली गई होली के दृश्य को बताता है.
होली रंगों का त्योहार है, लेकिन इसके कितने रंग है यह कहना मुश्किल है. होली अपने ही रंग में लोगों को रंग लेती है और जो इसके रंग में डूब गया वह मतवाला हो जाता है. फिर चाहे वह बृज में कृष्ण और राधा की प्रेम की प्रतीक वाली होली हो, श्मशाम में चिता के भस्म से खेली जाने वाली शिव की अद्भुत होली या फिर अयोध्या में राम-सीता की होली. होली के कई मनोरम दृश्य सदियों से देखने को मिल रहे हैं.
राम सीता की होली
खेलत रघुपति होरी हो, संगे जनक किसोरी
इत राम लखन भरत शत्रुघ्न, उत जानकी सभ गोरी, केसर रंग घोरी।
छिरकत जुगल समाज परस्पर, मलत मुखन में रोरी, बाजत तृन तोरी।
बाजत झांझ, मिरिदंग, ढोलि ढप, गृह गह भये चहुं ओरी, नवसात संजोरी।
साधव देव भये, सुमन सुर बरसे, जय जय मचे चहुं ओरी, मिथलापुर खोरी।
इसका अर्थ है- अयोध्या में श्रीराम सीता जी के संग होली खेल रहे हैं. एक तरफ राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न हैं तो वहीं दूसरी ओर सखियों संग माता सीता. केसर मिला रंग घोला गया है और दोनों तरफ से रंग डाला जा रहा है. मुंह में रोरी रंग मलने पर गोरी तिनका तोड़ती लज्जा से भर गई है. झांझ, मृदंग और ढपली के बजने से चारों ओर उमंग ही उमंग है. देवतागण आकाश से फूल बरसा रहे हैं.