प्रयागराज में गिरा था देवी सती के हाथ का पंजा:महंत ने बताया अलोपी मंदिर का इतिहास, देश-विदेश से आते हैं श्रद्धालु

KHABREN24 on March 23, 2023

प्रयागराज के अलोपी बाग स्थित अलोपी शंकरी शक्तिपीठ मंदिर में चैत्र नवरात्र के पहले ही दिन से श्रद्धालुओं की भारी भीड़ दिखने लगी है। अलोपी मंदिर को फूल, रंग-बिरंगी झालरों से दुल्हन की तरह सजाया गया है। अलोपी मां के दर्शन और पूजा अर्चना करने के लिए मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं की लंबी कतारें देखने को मिल रही हैं, जहां श्रद्धालु “जय माता दी” का उद्घोष करते हुए कतार में लगे दिखाई दे रहे हैं।

ब्रह्मा जी ने चैत्र नवरात्रि से ही श्रृष्टि की रचना करना किया था शुरू

आलोपी शंकरी शक्तिपीठ मंदिर के महंत यमुनापुरी महाराज ने बताया कि भारतीय सनातन परंपरा के तहत नवरात्रि के पहले दिन से ही नववर्ष की शुरुआत भी होती है। हमारा हिंदू वर्ष भी इसी पर्व के साथ से ही प्रारंभ होता है। श्रृष्टि का प्रथम दिवस भी इसे कहते हैं। ब्रह्मा जी ने चैत्र नवरात्रि के पहले दिन से ही श्रृष्टि की रचना करना शुरू किया था। नवरात्रि के पहले दिन सृष्टि के प्रथम बीज जौ को बोकर उसपर घटक स्थापित करके पूजा प्रारंभ करते हैं। इसी तरह 9 दिनों तक यह पूजा चलती है।

राजा दक्ष ने नहीं दिया था भगवान शिव को आमंत्रण

महंत यमुनापुरी महाराज अलोपी मंदिर के इतिहास को बताते हुए कहते हैं कि राजा दक्ष ब्रह्माजी के मानस पुत्र थे। उनकी पुत्रियों में एक पुत्री भगवती सती थीं। उनका विवाह भगवान शिव से हुआ। लेकिन राजा दक्ष उस विवाह से प्रसन्न नहीं थे। एक बार राजा दक्ष ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया और उस यज्ञ में समस्त देवी देवताओं और ऋषि मुनियों को बुलाया, लेकिन भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। जैसे ही उस यज्ञ के बारे में सती को पता चला। देवी सती भगवान शिव से वहां जाने की ज़िद करने लगीं, लेकिन शिव के बार बार मना करने बाद भी देवी सती नहीं मानी और वह यज्ञ में शामिल होने पहुंच गईं।

देवी सती ने अपने योग अग्नि के द्वारा अपने शरीर को वहीं पर छोड़ दिया

महंत ने बताया कि सती वहां जाकर देखती हैं तो शिव के नाम का कोई आसन नहीं है। ना उनकी आहुति है। सभी देवी देवताओं के नाम आहुतियां हैं। बड़े-बड़े यज्ञ चल रहे हैं। बड़ी बेरुखी ढंग से राजा दक्ष ने सती को देखा। सती ने कहा पिताजी यहां भगवान शिव का स्थान कहां है। मेरे पति का स्थान कहां है? देवी सती के इस प्रश्न पर राजा दक्ष ने अपमान जनक शब्दों का प्रयोग करते हुए कहा कि उसकी यहां कोई आवश्यकता नहीं है। दक्ष की बात को सुनते ही भगवती को बड़ा कष्ट हुआ और उन्होंने कहा कि महादेव ने मुझे आने के लिए मना किया था, लेकिन मैं अपनी इच्छा को ध्यान में रखते हुए यहां आई। यह मुझसे बहुत बड़ा अपराध हो गया। अब यह शरीर रखने लायक नहीं है। फिर देवी सती ने अपने योग अग्नि के द्वारा अपने शरीर को वहीं पर छोड़ दिया।

राजा दक्ष की गर्दन काट कर, उसी यज्ञ कुंड में डाल दिया

भगवान शिव को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने वीरभद्र और वीर काली नाम की दो शक्तियों काे अपनी जटाओं की फटकार से पैदा किया। दक्ष के यज्ञ को विध्वंस करने के लिए वहां पर भेजा दिया। शक्तियों ने वहां जाकर नर संहार किया और यज्ञ को भी विध्वंस किया। राजा दक्ष की गर्दन काट कर उसी यज्ञ कुंड में डाल दिया। उसके बाद भगवान शिव आते हैं। काफी बिरह में होते हैं। उस दृश्य को देखकर भगवान शिव का जैसे मोहभंग हो गया।

भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से भगवती के शरीर को खंड-खंड किया

भगवान शिव ने अपने कंधे पर भगवती का शव लिया और वहां से चल दिए। लोगों के प्रार्थनाओं पर दक्ष को बकरे का सर लगा दिया। आगे जब भगवान शिव देवी सती की देह को लेकर चले, उनकी हालत से पूरा ब्रह्मांड जैसे उदासीनता में चला गया। भगवान शिव को उस पीड़ा से बाहर निकलने के लिए देवताओं के आग्रह पर भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से भगवती के शरीर को खंड-खंड कर दिया। वह अंग जहां-जहां गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ बने।

जहां-जहां शक्तिपीठ बनी, वहां वहां शिव भी भैरव रूप में प्रतिष्ठित हुए

महंत जी बताते हैं कि प्रयागराज के अलोपी बाग में भगवती के हाथ की सभी अंगुलिया यानि पूरा पंजा यहां आकर गिरा। जो आलोप शंकरी के नाम से प्रतिष्ठित हुई। जहां-जहां यह शक्तिपीठ बनी, वहां वहां शिव भी भैरव रूप में उन शक्तिपीठों की सुरक्षा के लिए प्रतिष्ठित हुए। क्योंकि जहां शिव हैं, वहां भगवती हैं, जहां भगवती हैं, वहां शिव हैं। यहां भव नाम के भैरव इस शक्तिपीठ पर हैं जो ललितेश्वर महादेव के नाम से भी जाने जाते हैं, जिनका मंदिर ठीक इसके बगल में है। यह पौराणिक कथा पुराणों में भी है।

धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चारों पुरुषार्थ यहां होते हैं प्राप्त

महंत ने बताया कि यहां धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चारों पुरुषार्थ प्राप्त होते हैं, जो जिस भाव से आता है, उसको उस भाव की पूर्ति होती है। सोमवार और मंगलवार को यहां पर बहुत श्रद्धालु आते हैं। दोनों नवरात्रों में यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। अपने भाव भक्ति से भगवती की आराधना करते हैं। अपनी अपनी मनोकामना पूर्ण करते हैं।

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