छत्तीसगढ़ प्रदेश में आरक्षण का मसला एक बार फिर से विवादों में है । दूसरी तरफ मंगलवार को राज्यपाल ने ऐसा इशारा दिया, जिससे ये अंदाज लगाया जा रहा है कि आरक्षण विधेयक फिलहाल कुछ और समय के लिए लटका रह सकता है। मीडिया ने जब राज्यपाल विश्वभूषण हरिचंदन से सवाल किए तो वह सवालों से बचते हुए दिखे। जवाब देने से बचते हुए चले गए, उन्होंने जाते-जाते यह कह दिया कि यह सियासी मसला है आस्क टू CM (मुख्यमंत्री से पूछिए)।
मीडिया का सवाल सुनकर राज्यपाल लौट गए।
राज्यपाल का यूं इस सवाल से बचना, कई तरह की चर्चाओं को मौका दे गया, जानकार बता रहे हैं कि फिलहाल राजभवन आरक्षण के मसले पर कोई बड़ा फैसला करने की स्थिति में नहीं है। मौका कृषि विश्वविद्यालय में हुए दीक्षांत समारोह का था । इस मौके पर बतौर अतिथि राज्यपाल विश्वभूषण हरिचंदन और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पहुंचे हुए थे। मंच पर दोनों साथ ही मौजूद थे। बीच-बीच में दोनों के बीच हल्की बातचीत भी होती रही, कार्यक्रम के बाद जब दोनों हस्तियां मीडिया के बीच पहुंची तो आरक्षण के मसले पर सवाल हुआ।
भूपेश बघेल ने भाजपा पर आरोप लगाए।
फिर मुख्यमंत्री बोले…
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मीडिया ने जब सवाल किया तो उन्होंने कहा मैंने तो प्रधानमंत्री को पत्र लिखा, लेकिन उधर से जवाब नहीं आ रहा है । कुलमिलाकर भारतीय जनता पार्टी आरक्षण के खिलाफ में है। CM ने आगे कहा- विधानसभा से जो पारित है वो विधेयक राजभवन में अटका है। हमें कृषि महाविद्यालय शुरू करने हैं और भी महाविद्यालय खोले जा रहे हैं। अब हमें भर्ती करनी है, स्टाफ की, असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्ती करने पड़ेगी लेकिन जब तक कि आरक्षण की बिल लटका हुआ तब तक हम भर्ती नहीं कर पा रहे हैं।
मुख्यमंत्री ने आगे कहा- बहुत सारे विभाग है जिनमें हमें भर्ती करनी है लेकिन भर्ती अटकी है। चाहे एजुकेशन हो, पुलिस हो, चाहे हेल्थ डिपार्टमेंट हो, एग्रीकल्चर की बात हो, इरीगेशन की बात तो सब में भर्ती करनी है लेकिन भर्ती रुकी हुई है । दूसरी तरफ यह है कि एग्जाम भी होनी है उसमें भी आरक्षण का मामला है, इसलिए फैसला करना चाहिए।
आरक्षण मामले में चर्चा कर चुके हैं मुख्यमंत्री और राज्यपाल
CM और राज्यपाल की हो चुकी है मुलाकात
पिछले महीने जब राज्यपाल विश्वभूषण हरिचंदन ने बतौर छत्तीसगढ़ के राज्यपाल जवाबदारी सम्भाली, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल उनसे मिलने राजभवन पहुंचे थे। राजभवन में हुई इस मुलाकात में प्रदेश के अब तक के सबसे बड़े सियासी मसले यानी की आरक्षण बिल पर भी बात हुई। कुछ देर तक चली बात-चीत के वक्त वहां प्रदेश के मुख्य सचिव अमिताभ जैन, मुख्यमंत्री के अपर मुख्य सचिव सुब्रत साहू भी मौजूद थे। आरक्षण पर प्रदेश के इन अफसरों ने भी राज्यपाल को जानकारी दी।
मुलाकात के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा था – मैंने आरक्षण के मामले में राज्यपाल से बात की है, उनको बताया है कि प्रदेश में सरकारी भर्ती रुकी है। हम चाहते हैं कि इस पर जल्द निर्णय हो। ताकि प्रदेश के हित में काम हो सके, राजनीति अपनी जगह है। सब का उद्देश्य जनता का हित है, युवा पीढ़ी का भविष्य प्रभावित हो रहा है। इसलिए तत्काल संज्ञान लेकर फैसला करने के लिए राज्यपाल से आग्रह किया था।
राज्यपाल ने आरक्षण मामले पर अक्सर बचने का प्रयास किया है।
तो क्या राज्यपाल दबाव में हैं
जिस तरह से राज्यपाल मंगलवार को मीडिया से सवालों से बचते दिखे वो कई तरह के सवाल को जन्म दे रहा है। पिछले कांग्रेसी विधायक और मंत्रियों का दल राजभवन इसी मामले पर चर्चा करने पहुंचा था। मंत्री कवासी लखमा भी इस दल में शाामिल थे। लखमा ने कहा- राज्यपाल से मुलाकात तो हुई मगर जैसी उम्मीद थी वैसा आश्वासन नहीं मिला। उनकी बात-चीत से लगा कि वो राजनीति के दबाव में हैं। राज्यपाल यही कहते रहे कि देखते हैं, कर रहे हैं, समीक्षा कर रहे हैं। मगर कुछ ठोस बात नहीं हुई। हम गए तो हमें बैठाया हम सभी की बातें तो सुनी मगर आश्वासन नहीं मिला।
क्या है आरक्षण का मसला ?
राज्य सरकार ने 2 दिसंबर को विधानसभा के विशेष सत्र में राज्य में विभिन्न वर्गों के आरक्षण को बढ़ा दिया था। इसके बाद छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जनजाति के लिए 32 फीसदी, ओबीसी के लिए 27 फीसदी, अनुसूचित जाति के लिए 13 फीसदी और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 4 फीसदी आरक्षण कर दिया गया। इस विधेयक को राज्यपाल के पास मंजूरी के लिए भेजा गया था। तब राज्यपाल रहीं अनुसूईया उइके ने इसे स्वीकृत करने से इनकार कर दिया और अपने पास ही रखा।
पिछली राज्यपाल को सरकार के मंत्रियों ने विधेयक सौंपा मगर दिसंबर से अप्रैल तक हस्ताक्षर नहीं किए गए। राज्यपाल अनुसुइया बदल भी गईं।
राज्यपाल के विधेयक स्वीकृत नहीं करने को लेकर एडवोकेट हिमांक सलूजा ने और राज्य शासन ने याचिका लगाई थी। राज्य शासन ने आरक्षण विधेयक बिल को राज्यपाल की ओर से रोकने को हाईकोर्ट में चुनौती दी है। इस केस की अभी सुनवाई लंबित है। आरक्षण बिल पर 2 दिसंबर से ही राज्यपाल के हस्ताक्षर का इंतजार है, राज्यपाल बदल गए लेकिन हस्ताक्षर नहीं हुए।