ज्ञानवापी परिसर में कथित शिवलिंग की पूजा और राग-भोग के अधिकार से संबंधित मामले की बुधवार को सुनवाई होगी। शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद की याचिका पर सिविल जज सीनियर डिविजन कुमुद लता त्रिपाठी की अदालत में बहस होगी। यह याचिका 4 जून, 2022 को दाखिल की गई थी।
इस याचिका के तहत ज्ञानवापी परिसर में कथित शिवलिंग की आकृति की पूजा-पाठ, राग भोग और आरती करने की अनुमति मांगी गई है। अविमुक्तेश्वरानंद का कहना है कि ज्ञानवापी के अंदर वजूखाना वाली जगह पर जो आकृति मिली है, वह आदि विश्वेश्वर का सबसे पुराना शिवलिंग है। इसलिए, उनका नियमित पूजा-स्नान, शृंगार और राग-भोग जरूरी है।
यह तस्वीर पिछले साल 4 जून की है। उस समय अविमुक्तेश्वरानंद को ज्ञानवापी के अंदर कथित शिवलिंग की पूजा करने से पुलिस ने रोका था।
पूजा करने से रोका, तो बैठ गए थे अनशन पर
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने 4 जून को ज्ञानवापी परिसर जाकर शिवलिंग की पूजा का ऐलान किया था। हालांकि, उस दिन सुबह पुलिस और प्रशासन ने उन्हें ज्ञानवापी जाने से रोका था। इससे नाराज होकर वह श्रीविद्या मठ में अनशन पर बैठ गए थे। उस दौरान उन्होंने संकल्प लिया था कि जब तक शिवलिंग की पूजा शुरू नहीं हो जाती। तब तक वह अन्न-जल ग्रहण नहीं करेंगे।
पूर्व शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती को यह पत्र भेजकर उनके धार्मिक काम की तारीफ की गई थी।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती की ओर से ज्ञानवापी में शिवलिंग की पूजा-पाठ के अधिकार के लिए 4 जून को अदालत में याचिका दाखिल की गई। उनकी याचिका पर जिला जज की अदालत ने 7 जून को अपना आदेश सुरक्षित रखा था। इसके बाद सुनवाई की तारीख टलती ही जा रही है। पहले उनकी याचिका प्रभारी जिला जज की कोर्ट में थी। जिस पर सुनवाई करते हुए मामले को जिला जज की कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया।
ज्ञानवापी मस्जिद में मिली पत्थर की इस संरचना को लेकर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का दावा है कि यह आदि विश्वेश्वर हैं। उनका कहना है कि भगवान की पूजा सनातन धर्मियों का परम कर्तव्य है।
देवता एक जीवित बच्चे की तरह होते हैं – शंकराचार्य
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद और राम सजीवन ने वरिष्ठ अधिवक्ता अरुण कुमार त्रिपाठी, रमेश उपाध्याय, चंद्रशेखर सेठ के माध्यम से अदालत में याचिका दाखिल किया था। अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा था कि कानूनन एक देवता की परिस्थिति एक जीवित बच्चे के समान होती है। जिसे अन्न-जल आदि नहीं देना, संविधान की धारा अनुच्छेद-21 के तहत दैहिक स्वतंत्रता के मूल अधिकार का उल्लंघन है।
ये लेटर प्रशासन की तरफ से स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को जारी किया गया था। इसमें कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए ज्ञानवापी में पूजा की अनुमति न दिए जाने के बारे में बताया गया है।