इजराइल और हमास के जंग छिड़ने के साथ ही दुनिया भर में रहने वाले यहूदियों पर चर्चा शुरू हो गई। राष्ट्रपति महात्मा गांधी भी मानते थे कि यहूदी जहां-जहां भी गए, वहां-वहां उनका खून बहा। उनके साथ जुल्म हुआ। हत्या और ज्यादती हुई। यूरोप में तो यहूदियों की बस्ती को ‘घेटो’ कह दिया गया। जर्मनी में हिटलर द्वारा सबसे बड़ी यहूदी हत्याओं के बाद अब फिलीस्तिनी, ईरानी, लेबनानी भी 60 लाख इजराइली को कबूल नहीं कर पा रहे हैं। लेकिन, भारत ने 2 हजार साल पहले दिल खोलकर यहूदियों का स्वागत किया था। इतना बेहतर कि आज उन यहूदियों का 85% जीन इंडियन हो चुका है।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) में हुए एक रिसर्च के अनुसार, केरल में रहने वाले यहूदी धर्म के लोगों के जीन का 15% और महाराष्ट्र के यहूदियों का 30% हिस्सा यरूशलम वाले मूल यहूदियों का है। बाकी, भारतीयों का।
यह तस्वीर भारत के आजादी से पहले की बताई जाती है। रब्बी अव्राहम अपनी पत्नी पनीना के साथ जिन्होंने भारत में शादी की।
यहूदियों में भारतीय महिलाओं का DNA
इस रिसर्च के अनुसार, भारत में करीब 2 हजार साल पहले ये लोग केरल से प्रवेश किए। यहां पर उन्हें कोचिन इजराइली कहा गया। यहूदियों की दूसरी शाखा भारत में मुंबई से करीब 1000 साल पहले आई। इन्हें बेन इजराइली कहा गया। रिसर्च बताता है कि इन यहूदी लोगों ने भारत में बिना किसी संघर्ष के शादियां की। अपना परिवार बड़ा किया। भारत में आने वाला यह दुनिया का पहली विदेशी धार्मिक लोगों का दल था। यह रिसर्च पेपर प्रतिष्ठित जर्नल ‘नेचर के साइंटिफिक रिपोर्ट’ में छप चुका है।
यह तस्वीर महाराष्ट्र आए एक यहूदी परिवार की है।
यह रिसर्च करने वाले BHU के जीन वैज्ञानिक प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे और उनकी टीम ने कहा कि भारत में रहे इजराइली लोगों के DNA में मूल यहूदियाें का Y क्रोमोसोम मिलता है। Y क्रोमोसोम पुरुषों का है। वहीं, भारत से कनेक्शन के बाद यहां उनमें माइटाेकांड्रियल DNA भी रिपोर्ट किया गया।
ये माइटाेकांड्रियल DNA भारतीय महिलाओं का है। यानी कि उन्होंने भारत में आकर यहां की महिलाओं से शादियां की। यही Y क्रोमोसोम भारतीयों का उनके जीन में मिक्स हो गया। प्रो. चौबे ने कहा कि भारत के साथ उन लोगों का कभी भी कोई क्लैश नहीं हुआ। न अब और न ही इतिहास में।
2000 पहले यहूदियों की थीं 15 जनजातियां
करीब 2000 साल पहले यहूदियों के 15 जनजातियों का दल दुनिया भर में पलायन कर गया। जिसमें से 1500 साल पहले एक दल केरल के रास्ते भारत पहुंचा। वहीं, दूसरा महाराष्ट्र में आया। भारत में 2 लाख यहूदी थे, जिसमें से अब केवल 5 हजार ही भारत में हैं। इजराइल देश बनने के बाद से जो यहूदी भारत से इजराइल में बुलाए गए उनके लिए एक अलग कालोनी बसा दी गई।
कोच्चि में कोचिन यहूदियों की सिमेट्री।
भारत से गई जिप्सी जनजाति यूरोप में पड़ी अलग-थलग
भारत से 1500 साल पहले निकली जिप्सी जनजाति यूरोप में अलग-थलग पड़ी है। उनके साथ भेदभाव होता है। दोयम दर्जे का समझे जाते हैं। लेकिन, हमने तो यहूदियोंं का इतना स्वागत किया कि उनका DNA ही भारतीयाें के साथ मिक्स हो चुका है। इस रिसर्च से पहले यहूदियों को लेकर काफी भ्रांतियां फैली हुईं थीं। लेकिन, स्पष्ट हो चुका है।
यह मैप, BHU के रिसर्च में अटैच किया गया है। इसमें नीले रंग के अंदर हरे रंग के गोले से यह दिखाया गया है कि भारत में कहां-कहां पर यहूदी लोगों की बसावट है।
गांधी जी ने कहा था- यरूशलम में बसने पर होगा विवाद
यहूदियाें का अपनी पवित्र धरती यरूशलम में बसना ही, हमास-इजराइल वार की वजह है। महात्मा गांधी भी मानते थे कि कि संसार ने यहूदियों के साथ बहुत क्रूर जुल्म किया है। जहां तक मैं जानता हूं, यूरोप के बहुत सारे हिस्सों में यहूदी बस्तियों को ‘घेटो’ कहा जाता है। उनके साथ जैसा निर्दयतापूर्ण बर्ताव हुआ, वह नहीं हुआ होता तो इनके फिलीस्तीन में लौटने का कोई सवाल ही कभी पैदा नहीं होता।
यहूदियों ने 1948 में भारत छोड़ा
सेकेंड वर्ल्ड वार के बाद 1948 में यरूशलम के आसपास यहूदियों का एक देश इजराइल फिर से बसा। पूरी दुनिया से यहूदियों को इजराइल में बसाया गया। वहीं, भारत में उस समय करीब 30 हजार से ज्यादा यहूदी रहा करते थे। जिसमें से ज्यादातर इजराइल में जाकर बस गए। आज दुनिया भर में यहूदियों रहते हैं। इजराइल में 43%, अमेरिका में 39%, फ्रांस में 3%, कनाडा में 2.7% और यूके में 2% यहूदी निवास करते हैं।
इन्हाेंने किया रिसर्च
BHU की यहूदियों पर हुए इस रिसर्च में प्रो. चौबे के साथ ही डॉ. कुमार स्वामी थंगराज, डॉ. मानवेंद्र सिंह, डॉ. नीरज राय, आशीष सिंह, डॉ. लालजी सिंह समेत दुनिया भर के कई वैज्ञानिक शामिल थे।