महाकुंभ में हर्षा रिछारिया की वापसी हुई है। उन्होंने कहा कि मैं अपने घर में ही आई हूं। मैं अपने महाराज जी के पास ही आई हूं, जिनका आशीर्वाद मेरे साथ बना हुआ है, जिनका हाथ मेरे सिर पर है। अगर वह मेरे साथ हैं तो मुझे और क्या हो सकता है। एक पिता का साथ अगर बेटी को मिल गया तो उसको और किसकी जरूरत है।
हर्षा ने अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रविंद्र पुरी को अपना पिता कहा है। यह जानकारी मिली है कि उन्होंने अब कैलाशानंद महाराज का आश्रम छोड़ दिया है। अब वह निरंजनी अखाड़े में अध्यक्ष रविंद्र पुरी के संरक्षण में रहेंगी।
हर्षा फिर से शाही रथ पर बैठ कर अमृत स्नान करने जाएंगी। 4 जनवरी को महाकुंभ के लिए निरंजनी अखाड़े की पेशवाई निकली थी। उस वक्त भी हर्षा रिछारिया संतों के साथ रथ पर बैठी नजर आई थीं। इसके बाद रथ पर बैठने को लेकर कई संतों ने नाराजगी जाहिर की थी।
अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रविंद्र पुरी ने हर्षा रिछारिया का स्वागत किया।
युवाओं का रुख धर्म की तरफ करने आई हूं जैसा कि मैंने पहले भी कथा था कि मैं यहां पर धर्म को जानने के लिए आई हूं। मैं धर्म से जुड़ने के लिए आई हूं। समाज में जागरूकता फैलाने के लिए आई हूं और युवाओं का रुख धर्म की तरफ करने के लिए आई हूं। मैं उम्मीद करती हूं कि जब महाराज जी का आशीर्वाद मेरे सिर पर है तो मैं धर्म की तरफ लोगों को ला पाऊंगी।
कुछ शब्दों से मुझे बहुत ज्यादा तकलीफ हुई कुंभ छोड़कर जाने के सवाल पर हर्षा रिछारिया ने कहा कि कुछ शब्दों से मुझे बहुत ज्यादा तकलीफ हुई। मैं उतनी उम्मीद नहीं कर रही थी कि प्रयागराज जाकर ऐसा कुछ मैं सुनूंगी। लेकिन, जब मैंने सुना तो उससे मुझे तकलीफ हुई। कहीं ना कहीं महाराज जी ने मुझे हौसला दिया है, उन्होंने मेरा साथ दिया।
हर्षा रिछारिया सोमवार शाम रविंद्र पुरी महाराज से मिलने पहुंचीं।
युवाओं के फोन-मैसेज के बाद वापसी की हर्षा ने कहा- देश के तमाम युवाओं ने मैसेज, कॉल्स और ईमेल्स करके कहा कि अगर आप चली गईं तो हम भी धर्म के लिए मुड़ना नहीं चाहेंगे। हम जहां हैं वहीं रहना पसंद करेंगे। इसके बाद मैंने वापसी का मन बदला। इस रास्ते में अगर इतनी चुनौतियां होती हैं तो हम धर्म से दूर ही ठीक हैं। कहीं ना कहीं यह चुनौतियां फेस करते हुए मैं आगे बढूंगी और देश के तमाम युवाओं को जो मेरी तरह भटके हुए हैं धर्म की तरफ जरूर लेकर आऊंगी।
मेरे आंसू खुशी और दुख दोनों बयां करते हैं अपने आंसुओं पर हर्षा रिछारिया ने कहा- मेरे आंसू खुशी और दुख दोनों बयां करते हैं। महाराज जी का साथ मिलने के बाद अब खुशी ज्यादा बयां करते हैं। हमारे वेद, शास्त्र और पुराणों में नारी को हमेशा दुर्गा शक्ति के रूप में पूजा गया है। महाराज जी मेरे पिता तुल्य हैं, मैं उनकी बेटी हूं। उनका हाथ मेरे सिर पर है। अब मुझे नहीं लगता कि मुझे कोई भी झुका सकता है, तोड़ सकता है। अब मैं पूरे महाकुंभ में रहूंगी। यह मेरी कोशिश रहेगी, बाकी ईश्वर की मर्जी।