समय के साथ मोक्ष की नगरी काशी में तर्पण का तौर-तरीका बदल गया है। 21 सितंबर तक पितृपक्ष है, ऐसे में पिशाच मोचन कुंड पर पिंडदान कराने वालों की भीड़ है।
‘दैनिक भास्कर’ की टीम भी यहां पहुंची। पिशाच मोचन कुंड पर पूजा-पाठ और तर्पण हो रहा है। हर पंडित के सामने यजमान दिख रहे थे। मगर, एक पंक्ति ऐसी भी थी, जहां पंडित तो मंत्र पढ़ रहे थे, मगर उनके सामने ट्राईपॉड पर कैमरा लगा हुआ था। कुछ पंडित मोबाइल पर VIDEO शूट करते हुए तर्पण करवा रहे थे।
ऐसी ही पूजा करवा रहे आचार्य मोहित उपाध्याय से हमने बात की। हमने पूछा- आप बिना यजमान के कैसे पिंडदान करवा रहे हैं। उन्होंने बताया- ये जिनकी पूजा चल रही है, ये ऑस्ट्रेलिया से LIVE पूजा देख रहे हैं। कैमरे की मदद से लाइव स्ट्रीमिंग हो रही है। जब पूजा हो जाएगी वो हमारे QR कोड पर पेमेंट भेज देंगे।
वह कहते हैं- कई यजमान ऑस्ट्रेलिया, लंदन या अमेरिका में हैं, वह भारतीय मूल के हैं। वहां जाकर बस गए थे, मगर पूर्वजों का पिंडदान काशी में करना चाहते हैं। उन्हें यहां तक आने में दिक्कत हो रही है। कई यजमान अस्वस्थ होने की वजह से नहीं आ पाते हैं। तो वो हमसे संपर्क करते हैं।
कैमरा ट्राईपॉड पर लगा है। उसके सामने पंडित पिंडदान की पूजा कर रहे हैं।
पंडित बोले- एक बार में 5 लोगों की पूजा हो सकती है
हमने पूछा- फिर पूजा कराने के लिए यजमान की डिटेल कैसे लेते हैं। पंडित कहते हैं- जिन लोगों का पिंडदान होना होता है, उनका गोत्र, वंश की जानकारी, नाम-पता पूछते हैं। संकल्प मोबाइल पर कराया जाता है, इसके बाद पूजा-पाठ शुरू होता है। काशी में त्रिपिंडी श्राद्ध होता है। मान्यता है कि इस तरह की पूजा से पूर्वज खुश होते हैं, घर में सुख शांति और समृद्धि आती है।
हमने पूछा- लोगों का भरोसा कैसे होता है कि आप उनकी पूजा ठीक से कर रहे हैं? पंडित कहते हैं- ये देख रहे हैं आप, एक कैमरा लगा हुआ है, ये पूरी तरह से ऑनलाइन है। दूसरा- हम उन्हें पूरी पूजा का वीडियो भेजते हैं। वह अपने मोबाइल पर ऑनलाइन पूजा देख सकते हैं। हमने पूछा- एक बार में एक ही व्यक्ति की पूजा होती है या एक से ज्यादा की हो सकती है? वह कहते हैं- एक साथ 5-6 लोगों की पूजा करवा सकते हैं।
इस्लाम छोड़कर सनातन धर्म में आए 150 लोगों ने पिंडदान कराया यहीं पर पूजा करवा रहे एक और पंडित योगी आलोक ने कहा- काशी में हमेशा से विदेशों से लोग आते रहे हैं, मगर अब भीड़ अधिक होने लगी है, इसलिए विदेशों से आने वाले यजमानों को दिक्कत महसूस होती है, इसलिए ऑनलाइन पिंडदान भी लोग करवाने लगे हैं।
पितृपक्ष 7 सितंबर से शुरू हुए। इस बार हमसे ऐसे 150 लोगों ने पिंडदान करवाए हैं, जो मुस्लिम धर्म छोड़कर सनातन में आए हैं। उन्होंने पितृपक्ष में पूर्वजों के लिए होने वाली पूजा को पहले समझा, फिर हमसे पिंडदान की पूजा करवाई है। अब तक यहां पर 5 हजार लोगों के त्रिपिंडी श्राद्ध हो चुके हैं।
हमने पूछा- विदेशों में रहने वाले आप लोगों से संपर्क कैसे करते हैं? पंडित ने कहा– एक श्री मंदिर एप है, इसके जरिए हम लोगों से जुड़ते हैं। 2 ब्राह्मण से विधिवत पूजा कराने की फीस 2100 रुपए रखी गई है। इसमें पूजा सामग्री शामिल रहती है, मगर रुपए को लेकर हम पूजा नहीं रोकते हैं, जो भी यजमान देते हैं, उसे स्वीकार कर लिया जाता है।
6 दिन में 2 लाख लोगों का श्राद्ध पंडितों से बातचीत करके समझ आया कि पितृपक्ष पर काशी में श्राद्धकर्म के लिए हर रोज 15-20 हजार लोग पहुंच रहे हैं। पिशाच मोचन कुंड, गंगा घाटों और गलियों में 6 दिनों में 2 लाख से ज्यादा लोगों ने अपने पितरों की आत्मा की तृप्ति के लिए पिंडदान और श्राद्ध किया है।
आचार्य राम बिहारी कहते हैं- हम 4 चरण में इस पूजन को करते हैं, पहले चरण में मंगलाचरण होता है, ऋषि तर्पण किया जाता है, विष्णु भगवान का पूजन मुक्ति प्रदान करने के लिए और अंत में कलश की स्थापना की जाती है। सात्विक, राजस, तामस, त्रिदेव कलश का स्थापना कर अन्ना दान कराते हैं। यह पूजा करीब 2 घंटे तक चलती है, जिसमें 3 पंडित की आवश्यकता होती है।
मान्यता : काशी के पिशाच मोचन कुंड पर त्रिपिंडी श्राद्ध करने से पितरों को मिलती है व्याधियों से मुक्ति…
जाने इस कुंड के बारे में खास बातें भारत में सिर्फ पिशाच मोचन कुंड पर ही त्रिपिंडी श्राद्ध होता है, जो पितरों को प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु की बाधाओं से मुक्ति दिलाता है। इस कुंड के बारे में गरुड़ पुराण में भी बताया गया है। काशी खंड की मान्यता के अनुसार पिशाच मोचन मोक्ष तीर्थ स्थल की उत्पत्ति गंगा के धरती पर आने से भी पहले से है।
वाराणसी के पिशाच मोचन कुंड में ये मान्यता है कि हजार साल पुराने इस कुंड किनारे बैठ कर अपने पितरों जिनकी आत्माएं असंतुष्ट हैं, उनके लिए यहां पितृ पक्ष में आकर कर्म कांडी ब्राहम्ण से पूजा करवाने से मृतक को प्रेत योनियों से मुक्ति मिल जाती है।
मान्यता के अनुसार यहां कुंड के पास एक पीपल का पेड़ है, जिसको लेकर मान्यता है कि इस पर अतृप्त आत्माओं को बैठाया जाता है।
इसके लिए पेड़ पर सिक्का रखवाया जाता है, ताकि पितरों का सभी उधार चुकता हो जाए और पितर सभी बाधाओं से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर सके और यजमान भी पितृ ऋण से मुक्ति पा सके। प्रेत बाधाएं 3 तरीके की होती हैं। इनमें सात्विक, राजस, तामस शामिल हैं। इन तीनों बाधाओं से पितरों को मुक्ति दिलवाने के लिए काला, लाल और सफेद झंडे लगाए जाते हैं।
इसको भगवान शंकर, ब्रह्म और कृष्ण के ताप्तिक रूप में मानकर तर्पण और श्राद्ध का कार्य किया जाता है। प्रधान तीर्थ पुरोहित के अनुसार, पितरों के लिए 15 दिन स्वर्ग का दरवाजा खोल दिया जाता है। उन्होंने बताया कि यहां के पूजा-पाठ और पिंड दान करने के बाद ही लोग गया के लिए जाते हैं। उन्होंने बताया कि जो कुंड वहां है वो अनादि काल से है भूत-प्रेत सभी से मुक्ति मिल जाती है।
पिशाच मोचन कुंड के इसी पेड़ पर अतृप्त आत्माओं को बैठाया जाता है।