माफिया अतीक अहमद और उमेश पाल के बीच दुश्मनी 18 साल पुरानी है। इसकी शुरुआत 25 जनवरी, 2005 में बसपा विधायक राजू पाल के मर्डर के साथ हुई। उमेश पाल मर्डर उस केस का चश्मदीद गवाह था। अतीक अहमद ने उमेश पाल को कई बार फोन कर बयान न देने और केस से हटने को कहा। ऐसा न करने पर जान से मारने की धमकी दी।
उमेश पाल नहीं माना, तो 28 फरवरी, 2006 को उसका अपहरण करा लिया। उमेश पाल ने करीब डेढ़ साल बाद 5 जुलाई, 2007 में अतीक और उसके भाई अशरफ समेत 10 के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी। यहीं से उमेश पाल अतीक की आंख की किरकिरी बन गया।
यह अतीक अहमद की फाइल फोटो है। उसे आज साबरमती जेल से प्रयागराज लाया जा रहा है।
मायावती ने दी हिम्मत और भरोसा, तब एक साल बाद दर्ज कराई रिपोर्ट
अतीक अहमद ने उमेश पाल काे अपहरण के बाद अपने चकिया के ऑफिस में रखा था। उसे रातभर पीटा और टॉर्चर किया। इससे वह घबरा गया। उसे बिजली के शॉक भी दिए गए। अपनी आंख के सामने मौत का मंजर देखकर उमेश पाल टूट गया।
इसके बाद उसने डर के मारे अगले दिन कोर्ट में अतीक के पक्ष में गवाही दे दी। हलफनामा भी दे दिया। लिखा कि उमेश पाल मर्डर के समय वह वहां मौजूद नहीं था और न ही कुछ वह जानता है।
उमेश पाल राजू पाल हत्याकांड का मुख्य गवाह था।
रिपोर्ट दर्ज होने के बाद अतीक के आंख की किरकिरी बन गया उमेश
2005 में सपा की सरकार थी। अतीक अहमद उस समय सांसद था। उसके रसूख और डर के मारे उमेश पाल थाने ही नहीं गया। ठीक एक साल बाद 2007 में सरकार बदली। सपा को हार मिली। बसपा प्रमुख मायावती मुख्यमंत्री बनीं।
मायावती अपने विधायक राजू पाल की हत्या से काफी नाराज थीं। अतीक अहमद के ऊपर बसपा की सरकार बनते ही कार्रवाई शुरू हो गई। मायावती ने अतीक के दफ्तर पर बुलडोजर चलवा दिया। बताया जाता है कि मायावती ने उमेश पाल को लखनऊ बुलवाया। हिम्मत दी, ”तुम गवाही दो, तुम्हारी सुरक्षा सरकार करेगी।”
इसके बाद उमेश पाल हिम्मत जुटाकर 5 जुलाई, 2007 में अतीक, उसके भाई अशरफ सहित 10 लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई। इसी अपहरण केस के बाद उमेश पाल अतीक अहमद के निशाने पर आ गए। बीच-बीच में भी धमकी मिलती रही। भरी कचहरी उमेश पाल पर हमला हुआ, पर वह डरे नहीं। हिम्मत से आगे बढ़ते रहे।
उमेश पाल को पूरा भरोसा था कि योगी सरकार में उसका कुछ कोई नहीं बिगाड़ सकता। यही ओवर कॉन्फिडेंस उसे ले डूबा। 24 फरवरी को उमेश पाल की शूटर्स ने गोली और बम मारकर हत्या कर दी। इसमें उमेश की सुरक्षा में लगे दो सरकारी गनर संदीप निषाद और राघवेंद्र की भी मौत हो गई।
उमेश पाल अपहरण केस में अतीक अहमद और उसका भाई अशरफ मुख्य आरोपी हैं।
तारीख- 28 फरवरी 2006।
जगह- फांसी इमली, सुलेम सराय।
उमेश पाल अपनी मोटरसाइकिल से शहर की ओर जा रहा था। फांसी इमली के पास वह पहुंचा ही था कि उसके आगे गाड़ी लगाकर रास्ता रोक लिया गया। पीछे भी गाड़ी लग गई। पीछे की गाड़ी से दिनेश पासी, अंसार बाबा और एक अन्य ने उमेश पाल की कनपटी में पिस्टल सटा दी।
गाड़ी के अंदर धकेल दिया। उस गाड़ी में अतीक अहमद और 3 लोग अन्य लोग पहले से बैठे थे। उमेश की मोटरसाइकिल लेकर एक व्यक्ति अतीक अहमद के ऑफिस पहुंचा। उमेश पाल ने धूमनगंज थाने में दी गई तहरीर में कहा था कि उसे अतीक के लोगों ने रातभर मारा।
इसके बाद अतीक अहमद ने अपने वकील खान सौलत हनीफ से एक पर्चा लेकर दिया। कहा, ”इसको पढ़कर रट लो। कल अदालत में यही बयान देना है। नहीं तो तुम्हारी बोटी-बोटी काटकर अपने कुत्तों को खिला दूंगा।”
उमेश पाल की 24 फरवरी को प्रयागराज में दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।
पुलिस को फोन न करना, वरना उमेश की हत्या हो जाएगी…
उसी रात उमेश पाल के घर वालों को फोन कर धमकी दी गई कि तुम लोग पुलिस को फोन न करना, नहीं तो उमेश की हत्या कर दी जाएगी। अतीक ने उमेश पाल से कहा कि अगर मन मुताबिक गवाही न दी तो परिवार समेत तुम्हारी हत्या करा देंगे। इसके बाद अगले दिन उसे गाड़ी में बैठाकर ले गए।
28 मार्च को प्रयागराज की MP-MLA कोर्ट उमेश पाल अपहरण केस में फैसला सुनाएगी।
अब माफिया अतीक को सता रहा अपहरण केस में सजा का डर
उमेश पाल के 2006 में हुए अपहरण मामले में प्रयागराज की स्पेशल MP-MLA कोर्ट में सुनवाई पूरी हो चुकी है। सुनवाई पूरी होने के बाद कोर्ट ने अपना फैसला रिजर्व रखा है। स्पेशल कोर्ट इस मामले में 28 मार्च को अपना फैसला सुनाएगी।
उमेश पाल अपहरण मामले में माफिया अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ को सजा मिलना लगभग तय माना जा रहा है। ऐसे में 28 को आने वाला फैसला माफिया अतीक अहमद और उसके भाई पूर्व विधायक अशरफ का राजनीतिक भविष्य तय करने वाले हैं।
सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट शाश्वत आनंद कहते हैं कि अगर 28 मार्च को MP-MLA कोर्ट अतीक अहमद और अशरफ को दो या दो से अधिक साल की सजा सुना देती है, तो वे आगे सजा के दौरान चुनाव नहीं लड़ पाएंगे।
इनके पास हाईकोर्ट में सजा को चैलेंज करने का ऑप्शन बचता है। अगर हाईकोर्ट इस सजा पर स्टे कर देता है, तो फिर चुनाव लड़ा जा सकता है।
साल 2005।
तारीख- 25 जनवरी।
गणतंत्र दिवस की तैयारियां जोरों पर थीं। एक दिन पहले इलाहाबाद शहर पश्चिमी सीट से बसपा विधायक राजू पाल की 3 बजे दिनदहाड़े हत्या कर दी गई। उसे कुल 19 गोलियां मारी गईं। फिल्मी अंदाज में सत्ताधारी विधायक की हुई हत्या से उस समय यूपी की राजनीति में भूचाल ला दिया था।
राजू पाल के साथ बैठे संदीप यादव और देवीलाल की भी मौत हो गई थी। इसके बाद राजू पाल की 10 दिन की बेवा पूजा पाल ने अतीक अहमद, उसके भाई अशरफ और 8 अन्य के खिलाफ हत्या का केस दर्ज कराया। इसके बाद अतीक अहमद के राजनीतिक सफर पर ब्रेक लग गया।
उमेश पाल की मां शांति पाल का कहना है कि जब तक अतीक और उसके भाई अशरफ का खात्मा नहीं होता, उनके कलेजे को ठंडक नहीं मिलेगी।
अतीक अहमद 2004 में फूलपुर संसदीय सीट से लोकसभा चुनाव जीत गया। इसके बाद खाली हुई प्रयागराज शहर पश्चिमी सीट पर 2004 में उपचुनाव हुआ। इसमें बसपा के टिकट पर राजू पाल जीत गए। यहीं से इस सीट पर चुनावी रंजिश शुरू हो गई।
एक समय तक बाहुबली अतीक के दबदबे वाली इस सीट पर बसपा का झंडा अतीक खानदान को बर्दाश्त नहीं हुआ। अतीक अपने भाई अशरफ की हार को बर्दाश्त नहीं कर पाया और 25 जनवरी, 2005 को बसपा के विधायक राजूपाल की हत्या कर दी गई।
राजूपाल की हत्या के बाद खाली हुई शहर पश्चिमी सीट से अतीक अहमद के भाई खालिद आजिम उर्फ अशरफ ने समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। यहीं से अतीक अहमद एंड कंपनी की दुश्वारियां शुरू हुईं। फिर इस सीट से 2007 और 2012 का विधानसभा चुनाव राजू पाल की पत्नी पूजा पाल ने बसपा के टिकट पर जीता।
2017 के विधानसभा चुनाव में यह पहली बार भाजपा के टिकट पर सिद्धार्थ नाथ सिंह ने जीत हासिल की। सिद्धार्थ नाथ सिंह ने सपा की उम्मीदवार ऋचा सिंह को करीब 25 हजार मतों से हराया। इसके बाद 2022 के विधानसभा चुनाव में भी सिद्धार्थ नाथ सिंह ने सपा की ऋचा सिंह को बड़े अंतर से हराया।
अतीक अहमद की पत्नी शाइस्ता परवीन ने अभी हाल ही में AIMIM को छोड़कर बसपा का दामन थामा है। वह प्रयागराज से मेयर का चुनाव लड़ना चाहती थीं। उन्होंने कैंपेनिंग भी शुरू कर दी थी। तभी उमेश पाल शूटआउट हो गया।
अतीक अहमद को 28 मार्च को आने वाले उमेश पाल अपहरण केस की गवाही के लिए प्रयागराज लाया जा रहा है।
2004 में पहली बार लड़ी सांसदी और जीत गए
सपा ने अतीक अहमद को 2004 के लोकसभा चुनाव में फूलपुर से एक बार फिर लड़ने का मौका दिया। अतीक अहमद ने धनबल और बाहुबल से फूलपुर का चुनाव जीत लिया। उसने बहुजन समाज पार्टी की केसरी देवी पटेल को 64,347 मतों से करारी शिकस्त देकर साबित कर दिया कि हाल-फिलहाल अतीक अहमद का सितारा बुलंद रहेगा। सांसद बनने के बाद अतीक का रसूख बढ़ता चला गया। अतीक के नाम पर उनके गुर्गों ने शहर पश्चिमी में तमाम जमीनों पर अवैध रूप से कब्जा कर लिया। रंगदारी, वसूली का खेल खेला जाने लगा।